जहाँ लक्ष्मी कैद है कहानी कथावस्तु - राजेन्द्र यादव इस कहानी 'जहाँ लक्ष्मी कैद है' में परिवेश पर अधिक महत्व देकर पाठक के सामने सामाजिक यथार्थ प्रस्तुत
जहाँ लक्ष्मी कैद है कहानी कथावस्तु - Jahan Lakshmi Kaid Hai Kahani Ki Kathavastu
जहाँ लक्ष्मी कैद है कहानी कथावस्तु - राजेन्द्र यादव इस कहानी 'जहाँ लक्ष्मी कैद है' में परिवेश पर अधिक महत्व देकर पाठक के सामने सामाजिक यथार्थ प्रस्तुत करके दिखाते हैं कि धन-अर्जन के मोह में आधुनिक मानव दावन के स्तर तक गिर जाता है और दूसरे को कुंठाओं, अभाव, तनाव, यौन अतृप्ति, हीनता और विभीषिका भरी जिन्दगी ढोने को विवश कर देता है, जो अंतमें पराभूत होकर अपना अस्तित्व खो बैठता है।
लाला रूपाराम गांव से आकर शहर में बस गए हैं। वे 'लक्ष्मी फ्लोर मिल' बिठाकर अपना व्यापर शुरू करते हैं और धीरे-धीरे साबुन फैक्टरी, जूते के कारखाने की प्रतिष्ठा करके रईस बन जाते हैं। उनके गाँव से गोविन्द कालेज में पढ़ने के इरादे से आकर रूपाराम के पास पहुँचता है। रूपाराम उसे स्नेह से अपनी चक्की के बगल की कोठरी में रहने और बदले में रात को चक्की का थोड़ा हिसाब-किताब देखने को कहकर अपने पास रख लेते हैं। लाला रूपाराम का बेटा रामस्वरूप जीजी के पढ़ने के लिए पहले दिन गोविन्द से एक पत्रिका मांगकर ले जाता है और उसे तीसरे दिन वापस कर देता है। गोविन्द पत्रिका का एक पन्ना मुड़ा हुआ देककर उसे उलटकर देखा है कि 47-48 वें पन्नों पर तीन लाइनों पर नीली स्याही से निशान लगाए गए हैं, जिन्हें पढ़कर गोविन्द के मन में खलबली उत्पन्न हो जाती है। ये लाइने हैं -‘“मैं तुम्हें प्राणों से अधिक प्यार करती हूँ। मुझे यहाँ से भगा ले चलो। मैं फांसी लगाकर मर जाऊँगी।” इन निशानों के पीछे लक्ष्मी की कौन-सी मानसिकता छिपी हुई है, गोविन्द उस वस्तु स्थिति को जानने को अपनी व्यग्रता निखाता है। संयोग से ऊपर की मंजिल से लाला रूपाराम आकर बैठते ही ऊपर से चीजों के गिरने की आवाज आने लगी तो फिर लालाजी बिना किसी हड़बड़ी से ऊपर चले गए। पास बैठा चौकीदार बताता है कि आज चंडी चेत रही है । इससे गोविन्द प्रयास करके सारी घटनाओं का विवरण जान लेता है।
लाला रूपाराम बेटी को भगवान मानते हैं। वे मानते हैं कि बेटी के जन्म होने के बाद से सारी समृद्धि हुई है और वह शादी करके पराए घर में चली जाने से फिर बरबादी आ जाएगी। इस भय से वे बेटी की शादी नहीं करते। उसे ऊपर की मंजिल में बंदिनी जैसी जिन्दगी जीने को विवश कर देते हैं परिणाम -स्वरूप यौन - अतृप्ति, मानसिक चाप, पीड़ा और छटपटाहट से लक्ष्मी मानसिक रोगी बन जाती है। उसे मिरगी का दौरा आता है।
अब गोविन्द के चिंतन के माध्यम से लेखक राजेन्द्र यादव पाठकों के सामने तीन प्रश्न रखते हैं ? क्या गोविन्द पहला आदमी है जो इस पुकार को सुनकर व्याकुल हो उठता है। क्या औरों ने पहले से इस पुकार को सुना था और सुनकर अनसुना कर दिया है ? क्या ऐसी पुकार को अनसुना कर दिया जा सकता है ? इन तीनों प्रश्नों के माध्यम से एक सामाजिक यथार्थ का चित्रण करके लेखक के मन में मानवीय मूल्यों की पुन: प्रतिष्ठा के लिए सामाजिक सजगता उत्पन्न करने की ललक है ?
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