वांगचू का चरित्र चित्रण: वांगचू कहानी का मुख्य पात्र वांगचू है । सम्पूर्ण कहानी इसी पात्र के इर्द-गिर्द घूमती है। 'मुस्कराहट' उसके चेहरे की विशेषता है
वांगचू का चरित्र चित्रण - Wangchoo ka Charitra Chitran
वांगचू का चरित्र चित्रण: वांगचू कहानी का मुख्य पात्र वांगचू है। सम्पूर्ण कहानी इसी पात्र के इर्द-गिर्द घूमती है। 'मुस्कराहट' उसके चेहरे की विशेषता है। वह समाज की प्रत्येक परिस्थिति में एक सा भाव लिए रहता है। वह मानवता की भाषा बोलने वाला पात्र है। जो प्रेम के बल पर सम्बन्ध बनाता था।
वांगचू के चरित्र की विशेषताएं
- मित भाषी
- महाप्राण के प्रति आस्था भाव
- वांगचू का प्रेमी रूप
- भारत के प्रति प्रेम भाव
- राजनीति के पाटों में पीसता वांगचू
मित भाषी: वांगचू मित्त भाषी बौद्ध भिक्षु है। वह कम बोलने में विश्वास रखता है। बौद्ध ग्रन्थों का अध्ययन करना उसे अच्छा लगता है। वह किसी भी विषय पर खुलकर बात नहीं करता है इसी कारण उसे 'बूदम' भी कहा गया। उसे दुनिया के किसी भी विषय में दिलचस्पी नहीं थी। वांगचू प्यार का पुजारी था, वह प्रेम की भाषा बोलता और प्यार भरी मुस्कराहट मुँह पर फैलाये रखता था। समाज के किसी भी राजनीतिक मुद्दों पर वार्तालाप करने में कोई रूचि नहीं रखता था। "मुझे याद नहीं कि उसने हमारे साथ कभी खुलकर बात की हो, या किसी विषय पर अपना मत पेश किया हो। उन दिनों मेरे और मेरे दोस्तों के बीच घण्टों बहसें चला करती, कभी देश की राजनीति के बारे में, कभी धर्म के बारे में, लेकिन वाड्यू इनमें कभी भाग नहीं लेता था। वह सारा वक्त धीमे-धीमे मुस्कराता रहता और कमरे में एक कोने में दबकर बैठा रहता।"
महाप्राण के प्रति आस्था भाव: वांगचू महाप्राण के प्रति आस्था भाव रखने वाला भक्त है। महाप्राण का चाहे जन्म स्थान हो, चाहे महाप्राण के प्रवचन हो, चाहे महाप्राण जिस-जिस दिशा की ओर चरण उठे हो, वाङ् भक्तिपूर्ण कल्पना में डूबा मन्त्रमुग्ध सा महाप्राण के नाम से स्थापित हर दिशा में घूम आया था। महाप्राण से जुड़े स्थान से वह संवेदनशील रूप से जुड़ा था। इस सन्दर्भ में कहानी का उद्धरण द्रष्टव्य है - "जब से श्रीनगर में आया था, बर्फ से ढके पहाड़ों की चोटियों की ओर देखते हुए अक्सर मुझे कहता- वह रास्ता तहासा को जाता है ना, उसी रास्ते बौद्धग्रन्ध तिब्बत में भेजे गये थे। वह उस पर्वतमाला को भी पुण्य - पावन मानता था, क्योंकि उस पर बिछी पगडण्डियों के रास्ते बौद्ध भिक्षु तिब्बत की ओर गये थे।"
वांगचू का प्रेमी रूप: कहानी में मित्त भाषी वांगचू का प्रेमी रूप भी उभरता है। लेखक की छोटी मौसेरी बहन नीलम के प्रति वांगचू के हृदय में प्रेम के बीज पनप चुके थे। वह उसके प्रति प्रेम भाव रखता है। वाङ्का नीलम के प्रति कनखियों से देखना लेखक को शंका में डालता है। वाङ्यू श्रीनगर में कोई एक सप्ताह लेखक के पास ही ठहरा। उन्हीं दिनों उनकी छोटी मौसेरी बहन भी आई थी। शीघ्र ही दोनों में अन्तरंगता बढ़ती गई। अब दोनों में उपहारों का आदान–प्रदान होना आरम्भ होने लगा था। "और उसने दोनों मुट्ठियाँ खोल दीं, जिनमें चांदी के कश्मीरी चलन के दो सफेद झूमर चमक रहे थे। और वह दोनों झूमर अपने कानों के पास ले जाकर बोली – कैसे लगते हैं ?...उसके अपने कान कैसे भूरे भूरे हैं ! ... मेरे इस प्रेमी के ...तुम्हें उसके भूरे कान पसन्द हैं ?”
भारत के प्रति प्रेम भाव: वांगचू भारत से चीन वापिस जाता है तो वहां उदास रहने लगता है। चीन में उसका एक भाई रहता था राजनीतिक उथल-पुथल के कारण उससे भी उसका सम्पर्क टूट गया था। वांगचू जब चीन के ग्राम प्रशासन अर्थात पार्टी दफ्तर से लौटता है तो अत्याधिक उदास हो जाता है। वह जिस धरती पर पैदा हुआ, उसे वह उदास प्रतीत होने लगती है, क्योंकि उसे जो प्रेम भारत में मिलता है, जो शान्ति उसे भारत में मिलती है, वह उसे चीन में नहीं मिल पाती है। वह मन से भारत में ही रहा था, शारीरिक रूप से वह चीन में था और वह भी खोया हुआ सा। “जब वांगचू पार्टी दफ्तर से लौटा, तो थका हुआ था। उसका सिर भन्ना रहा था। अपने देश में उसका दिल जमीं नहीं पाया था। आज वह और भी ज्यादा उखड़ा-उखड़ा महसूस कर रहा था। छप्पर के नीचे लेटा तो उसे सहसा ही भारत की याद सताने लगी। उसे सारनाथ की अपनी कोठरी याद आयी, जिसमें दिन भर बैठा पोथी बांचा करता था। नीम का घना पेड़ याद आया, जिसके नीचे कभी-कभी सुस्ताया करता था। स्मृतियों की श्रृंखला लम्बी होती गयी । सारनाथ की कैंटीन का रसोइया याद आया, जो सदा प्यार से मिलता था।" भारत में रहने की मृगतृष्णा उसे वापिस खींच लाती है। जो प्यार, स्नेह अपनापन उसे भारत में मिला उसे चीन में नहीं मिला।
राजनीति के पाटों में पीसता वांगचू: 'वांगचू' कहानी का वांगचू एक ऐसे पात्र के रूप में उभरता है जो गलत राजनीतिक व्यवस्था एवं उसके भ्रष्ट रूप का पर्दाफाश करता है । उसके चरित्र से स्पष्ट होता है कि किस तरह किसी भी सामाजिक मुद्दों पर रूचि न रखने वाला व्यक्ति भी राजनीति का शिकार हो जाता है। जो समाज में प्रेम की धारा बहाने के पक्ष में है उसे ही यह अव्यवस्था निगल डालती है। बौद्ध भिक्षु वांगचू अव्यवस्था की चक्की में पिसता हुआ गुमनाम की मृत्यु को प्राप्त होता है। दो संस्कृतियों को एक करने वाले वांगचू की मृत्यु हृदय को भावविह्वल कर डालती है। वांगचू का व्यक्तिगत जीवन राजनीतिक बन जाता है। उसे हर हफ्ते महीने भर में वह कहां जाता है, क्या खाता है, क्या पढ़ता है, क्यों पढ़ता है इत्यादि प्रश्नों से सामना करना पड़ता है। आखिर बुलावा आया और वांगचू चिक उठाकर बड़े अधिकारी की मेज के सामने जा खड़ा हुआ। तुम चीन से कब लौटे ? ... कलकत्ता में तुमने अपने बयान में कहा कि तुम शान्तिनिकेतन जा रहे हो। फिर तुम यहाँ क्यों चले आये ? पुलिस को पता लगाने में बड़ी परेशानी उठानी पड़ी है।...तुम चीन से क्यों लौट आये ? मैं भारत में रहना चाहता हूँ ...। 'जो लौट आना था, तो गये क्यों थे ?” भारत और चीन की आपसी मुठभेड़ में आम नागरिक राजनीति से अनभिज्ञ रहने वाला वांगचू मारा जाता है।
अतः कहा जा सकता है कि वांगचू कहानी का मुख्य पात्र है। वह सादगी से भरपूर है, वह संवेदनशील एवं मित्तभाषी है और वह दो देशों की संस्कृतियों को एक कर प्रेम की गंगा बहाने का पक्षधर है। वह मानवता को स्थापित करने में रूचि रखता है।
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