सारा आकाश की नायिका प्रभा का चरित्र चित्रण

सारा आकाश की नायिका प्रभा का चरित्र चित्रण: सारा उपन्यास की नायिका प्रभा का चरित्र चित्रण करने के लिए हमें प्रभा के चरित्र की विशेषताओं पर गौर करना हो

सारा आकाश की नायिका प्रभा का चरित्र चित्रण

सारा उपन्यास की नायिका प्रभा का चरित्र चित्रण करने के लिए हमें प्रभा के चरित्र की विशेषताओं पर गौर करना होगा निम्नांकित बिंदुओं के  समझेंगे। 

1) सर्वाधिक सशक्त पात्र - प्रभा सारा आकाश उपन्यास के सारे पात्रों में सर्वाधिक सशक्त और प्रखर पात्र है। उपन्यास का अन्य कोई भी पात्र उसको तुलना में श्रेष्ठ नहीं ठहर पाता। यहाँ तक कि शिरीण भाई जैसा तेज और तीखा पात्र भी उसके सामने फीका सा लगता है। अपने कॉलेज की सबसे शैतान और कटखनी मानी जाने वाली लडकी प्रभा शादी के बाद एकाएक कितनी बदल जाती हैं, यह देखकर आश्चर्य होता। ससुराल में आते ही उसे सास के पर्याप्त दहेज न लाने के ताने सुनने पडते है, सुहागरात को ही पति की घोर उपेक्षा झेलनी पडती हैं, जिठानी के षडयन्त्र का शिकार हो सारे घर वालों द्वारा अपमान सहना पडता है। परन्तु इस लड़की में इतनी सहनशीलता है कि सब कुछ चुपचाप और बिना विरोध किए सहती रहती है। ससुराल में पहली बार कदम रखते ही उसका जैसा स्वागत होता है, वह एक मजबूत से मजबूत मन और चरित्र वाली लडकी को तोड डालने के लिए पर्याप्त था।

प्रभा एक अच्छे शहरी परिवार की इक लोती लडकी है। वह दसवी पास हैं। वह एक ऐसी लडकी हैं जो अपने विद्यार्थी जीवन में तरह-तरह के सपने देखती हैं, लेकिन उसके सपने समर के सपनों जैसे अव्यावहारिक नहीं है। वह परिस्थितियों के अनुरूप अपने को ढालने की पूर्ण क्षमता रखती है। एक शिक्षिता नारी होने के कारण ही वह विपरीत परिस्थितियों में भी साहस नहीं खोती, अपितु दृढ़ता और बुध्दिमत्ता से काम लेते हुए संघर्षरत रहती है। समर की पत्नी के रूप में वह अपने भारतीय नारी के आदर्श रूप को साकार करती है। पति की सारी अपेक्षा, अपमान को भी वह बड़ी ही शान्ति के साथ वैसे ही स्वीकार करती है, जैसे पति के प्यार को।

2) कल्पनाशीलता : विवाह से पूर्व आम लड़कियां की तरह उसने भी भविष्य के लिए तरह-तरह के सपने संजोये थे। विवाह होने के पहले जब वह पढ़ती थी, तो उसका रूप क्या था, वह क्या सोचती थी, भविष्य के कैसे कसे सपने देखा करती थी। अपने उस जीवन के सम्बन्ध में प्रभा स्वयं ही समर को बताती है - अपने क्लास की सबसे शतान लडकियाँ थी हम लोग । यहाँ प्रभा अपने और अपनी सहेली रमा के सम्बन्ध में बता रही है हम लोग आपस में सोचा करती थी, कभी शादी नहीं करेंगी, खूब पढ़- लिखकर गाँव में चली जायेगी और वहाँ स्त्रियों को पढाया करेगी। कभी सोचती - थोडा सा सामान लेकर सारे हिन्दुस्तान का पैदल टूर करेगी।

ये प्रभा और के वे सपने थे जो किशोर मन में उठा करते है। परन्तु प्रभा एक दूसरा सपना भी देखा करती थी, जो अधिक व्यावहारिक और पूरा होने की संभावना से भरा हुआ था। विवाह हो जाने के बाद वह रमा को पत्र लिखती हैं, इस पत्र में अपने सपने का उल्लेख करती है। यह पत्र जो किसी कारणवश डाक मैं डाला न जा सका। रमा के पत्र में वह कहती है काश, तुम्हीं आकर स्कूल की सबसे कटखनी और शेरनी लडकी को देख लेती। तुम्ही तो मुझे सरकस में नौकरी करने को कहा करती थी।... संसार की हर अच्छी चीज को चाहने की स्कूल के दिनों की कल्पना, वे भावुकता भरे सपने... रमा, किसी भी लडकी की शादी होती और में जाकर उसके पति को देखती तो सोचा करती थी कि मेरा पति ऐसा थोडे ही होगा। मेरा पति तो प्रोफेसर होगा, कहीं अफसर होगा। हम और वह बस दो ही प्राणी होंगे, ये किल- बिल, सास, देवर, भाभी, भतीजे, कुछ नहीं होगे। ऐसी ही और भी जाने क्या क्या बातें थी जिनमें डूबी रहती थी।

3) सपनों का चूर चूर हो जाना - प्रभा की तरह के सपने प्राय सभी लड़कियाँ देखा करती है । प्रभा के ये सपने कोई अनोखे नहीं थे। परन्तु विवाह के बाद तो उसे ऐसा लगा जैसे ऊपर आकाश में मुक्त उड़ान भरती किसी चिडिया को बहलिये ने तीर से बेच दिया हो और वह धरती पर पड़ी छटपटा रही हो। प्रभा को इन सपनों का एक छोटा सा कण भी तो नसीब नहीं हो सका। लाड़-प्यार में पली बाप की प्यारी इकलौती बेटी प्रभा को पति मिला तो ऐसा जो अभी इण्टर में पढ रहा था और शादी नहीं करना चाहता था। घर मिला तो ऐसा जहाँ रात-दिन आर्थिक अभाव का रोना धोना मचा रहता था, जहाँ परिवार के अनेक सदस्य चिल्लाते रहते थे। बात यहीं तक सीमित रहती तो सम्भवत: प्रभा सबर कर लेती। परन्तु उसे तो वहाँ नाटकीय जीवन बिताने को मजबूर कर दिया गया था। उसे न पति का स्नेह मिला, न सास-ससुर का वात्सल्य और संरक्षण। उसे मिला, तो केवल भयंकर उपेक्षा, अपमान और रात-दिन का काम में पिसते रहना। उसे कपड़े तक नसीब नहीं हुए थे। एक सुशिक्षिता लडकी की तरह उसने परिस्थितियों के अनुरूप अपने को बदल डाला ! 

4) सहनशीला आदर्शनारी - हिरनी के समान कल्पना के गगन में उन्मुक्त कुलांचे भरने वाली वह शेरनी विवाह के बाद मृत्यु की कामना करने लगती है। वह पत्र में तो रमा को अपनी वर्तमान दशा का वर्णन कर देती हैं, परन्तु प्रत्यक्ष जीवन में वह निरन्तर मौन और शान्त दिखाई देती है। वह अपना दुःख कहे भी तो किससे ? वहाँ कोई भी तो ऐसा नहीं हैं, जो उसके दुःख को सुख दे, उसे सान्त्वना दे। इसी कारण प्रभा अपने सारे दुख को पत्र के रूप में व्यक्त कर अपने मन को थोड़ा सा हल्का कर लेती हैं। इसके अलावा उसके पास कोई दूसरा चारा भी नहीं था। घर का सारा काम बिना कुछ कहे कर लेती है। इसी कारण उसमें अद्भुत सहन-शक्ति है।

सुहागरात को उसका पति उससे चिढकर उसका कट्टर विरोधी बन जाता है। भाभी का षडयन्त्र उसकी पाक कला की शोहरत पर भी पानी फेर देता है। सारे घर के लोगो का अपमान उसे पहली बार आने पर भोगना पडता है। जब वह दूसरी बार ससुराल आती है तो पति-पत्नी के बीच उत्पन्न गलत फहमी समर को उसका कट्टर शत्रु बना देती हैं। भाभी इस बात का फायदा उठाकर समर को चढ़ाती रहती है। बात यहाँ तक बढ़ जाती हैं कि घर में समर की दूसरी शादी कर देने की चर्चा होने लगती हैं। इस बात पर भी प्रभा मौन रहती हैं। लगता है, जैसे इन सारी बातों का उस पर कोई असर ही नहीं होता।

प्रभा पर होने वाले अत्याचारों का दायरा बढ़ने लगता है । वह सुबह उठकर आधी रात तक काम में लगी रहती हैं । फिर भी कोई उससे सीधे मुंह से नहीं बोलता। केवल मुन्नी उससे हल्की-सी हमदर्दी रखती है। जरा जरा सी बात पर सब उसे फटकारते हैं। समर तो उसे मारता भी हैं। वह सूखकर काँटा हो चली है। भयंकर ठंडी में भी एक फटी, मेली धोती लपेटे, ठंड से काँपती काम करती रहती है, परदा न करने के कारण भी उसे सबकी बातें सुननी पडती है। परन्तु प्रभा यह सब सहती हुई भी न किसी से शिकायत करती हैं, न किसी को तीखा जवाब देती है, और न काम में ही कोई ढील डालती है। प्रभा जब परेशान होती या काम करती रहती है यह देख कर समर प्रसन्न होता है, लेकिन प्रभा में सभी बातो की सहनशीलता होने के कारण वह समर को निराश करती है।

5) चरित्र पर लांछन असहनीय - प्रभा सारे अत्याचार, सारी यातनाएँ सहती चली जाती है, उसका प्रत्युत्तर नहीं करती। परन्तु जब उसके चरित्र पर लांछन लगाया जाता है, तो उसकी सहनशक्ति की सीमा टूट जाती हैं और वह पहली बार फूट-फूटकर रोती है। उसे आधी रात को छत के एक कोने में बैठ बिलख-बिलखकर रोता हुआ देख समर भी आश्चर्य चकित हो उस के प्रति करुणा से भर उठता है। उस पर यह लांछन लगाया जाता है कि वह दाल बनने के बहाने छत पर धूप में बैठी लोगों से आँखे लड़ाया करती है। बस, यही लांछन लगाने से उसे बुरा लगता है और वह रोने लगती हैं। सबके सामने नहीं, एकान्त में अकेली बैठी वह रोने लगती है । जब समर पहली बार उससे सहानुभूति, प्रेम दिखाता के हृदय महीनों से घुटता हुआ आवेग जैसे फट पडता है। वह समर को कसकर पकड़कर पूछती है -- मुझे बताओ, मैं तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? क्या कसूर किया तुम्हारा ? मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ, मैं तुम्हें पसन्द नहीं हूँ, तो अपने हाथ से मेरा गला घोटें दो, मैं चूं नहीं करूँगी। तुम शौक से दूसरी शादी कर लो, लेकिन मुझे... लेकिन मुझे बताओ तो सही ...  यह कहकर वह समर से बुरी तरह लिपटकर और जोर से रोने लगती हैं। दूसरे दिन जब समर उससे कल रोने का कारण पूछता है, तो वह बताती हैं। मैं क्या, उस दिन कोई भी खूब रोता।इतनी बड़ी हो गई, अभी तक चरित्र पर किसीने एक शब्द नहीं कहा। उस दिन जो सुना। ...  जिस दिन तुम भी मेरे चरित्र पर सन्देह करोगे, उस दिन जहर खा लूंगी। है, प्रभा सभी बातों को सहती है, लेकिन अपने चरित्र पर लगाये गये लांछन को वह सहती नहीं। इस चरित्र के लांछन के कारण समर और प्रभा का मिलन होता है।

6) समझादार और साहसी - प्रभा सब कुछ समझाती हैं, परन्तु किसी से कुछ भी कह नहीं पाती। जब दोनों एक हो जाते हैं, तो हमारे सामने प्रभा का जो रूप उभरता है, वह एक धैर्यशीला, समझदार और साहसी नारी का रूप हैं। उपन्यासकार पहली बार उसे खुलकर बोलने का अवसर देता है। जब समर उससे अम्मा और भाभी की नाराजी का कारण पूछता है, तो वह कहती है अम्मा - बाबूजी को नाराज करने का तो कारण साफ ही था। लेना देना उनके मन के लायक नहीं हुआ। रुपया पैसा, अच्छा जेवर - कपडा कुछ भी तो नहीं ला सकी। इसमें पढ़ी-लिखी होना भी एक दुर्गुण बन गया। बस, तुम्हारी भाभी को नाराज करने के लिए ये दो-तीन बातें काफी थी। दिनारात वे अम्मा के कान भरती रहती थी।

प्रभा एक सामान्य नारी होती तो या तो दिनभर कलह मचाए रहती या सॉवल की बहू की तरह जल मरती। उसे यह विश्वास था कि समर स्वभाव और आदत का बुरा नहीं हैं । इसी लिए उसने मायके जाकर अपनी ससुराल के दूसरे लोगों की तो बुराई की थी परन्तु समर की प्रशंसा की। समर के प्रति उसके हृदय में आदर और स्नेह हैं । उसे आशा है कि मुसीबत के ये दिन हमेशा नहीं रहेंगे। समर से मेल हो जाने के बाद प्रभा बडे संयम और समझदारी से काम लेती हैं। सामान्य नारियों के समान, समर के पीछले व्यवहार के लिए न तो उसे ताने देती है और न उससे झगड़ती है। वह समर की पूर्ण आज्ञाकारिणी बन जाती है।

7) समर की सच्ची अर्द्धांगिनी - प्रभा आरम्भ से अन्त तक कहीं भी समर का विरोध नहीं करती। विवाह होकर ससुराल आते ही वह समझ जाती है कि समर विवाह नहीं करना चाहता था। इसलिए वह समर के मार्ग में बाधा क्यो बने ? दूसरी बार आते ही समर उसके आगमन को पढ़ाई में बाधा समझता है। उसके पढ़ाई में बाधा न पडे इसलिए दूसरी जगह सोना चाहती हैं लेकिन मजबूर होकर उसे उस कमरे में ही सोना पडता है। समर उससे नहीं बोलता परन्तु प्रभा पत्नी के सारे कर्तव्य बडी लगन के साथ पूरे करती रहती है। इसका वर्णन समर अपने मुँहँसे करता है " मेरा सारा काम वह करती थी। लेकिन मैं अधिक-से-अधिक तटस्थ था। रात को लोटा भर पानी रख जाती कभी भाई साहब, बाबूजी या अम्मा की इच्छा से गुड की चाय बनाती तो गिलास- कटोरी में चाय चुपचाप मेरे पास आ जाती.. कुल मिलाकर कहा जाय, तो बोलने के सिवा सारे काम हो ही रहे थे।

इसके अतिरिक्त समर जब कॉलेज जाता, तो उसके कमरे की सफाई कर उसके मैले कपडे धोकर सुनाकर रख देती। यह स्थिति तो तब थी, जब समर से उसकी बोलचाल बन्द थी। दोनो में मेल हो जाने के बाद तो वह समर की सलाहकार और प्रेरक शक्ति-सी बन जाती है। जब तक समर खाना नहीं खा लेता, वह उसके इन्तजार मे भूखी बैठी रहती हैं। उसे खिलाकर ही खाती है। वह समर को प्रोफेसर बनाना चाहती हूँ। जब समर की नौकरी छूटने की बात उसे मालूम पडती है, और वह समर को बहुत हताश और व्याकुल देखती हूं, तो उसे साहस बंधाती है। 

समर से मेल हो जाने के बाद वह उसको पहले से भी अधिक सेवा करती हैं। उसके साथ हँसी-मजाक करती हैं, सन्तान की कामना से प्रेरित हो व्रत रखती हैं. गण्डा तावीज, बाँधने में भी संकोच नहीं करत। समर जब नौकरी पर जाने लगता है, तो सुबह बहुत जल्दी उठ, ताजा खाना बनाकर उसे समय पर घर से खाना कर देती है । जब वह थका हुआ घर लौटता है तो उसके पास बैठ कर मीठी मीठी बातें करती उसके पैर दबाने लगती है। प्रभा का यह रूप एक सच्ची अर्धांगिनी का है।

8) व्यवहार कुशल - प्रभा बहुत व्यवहार कुशल है । वह अपनी इस व्यवहार कुशलता के कारण संकट के अवसर को बचाती रहती है। समर को नौकरी लग जाने पर वह देखती हैं कि घरवालों का उसके प्रति व्यवहार बदल गया है। वह इसका कारण भी समझाती हैं कि कमाऊ बेटा और उसकी पत्नी महत्वपूर्ण बन ही जाते है। प्रभा की एक विशेषता यह भी है कि वह दूरदर्शी हैं। वह वर्तमान में ही न सिमटी रहकर आगे की, भविष्य की बात सोचती है। समर हताश होकर यह सोचने लगता है कि पढना छोड़कर कहीं नौकरी कर लें, घरवालों की उतनी मदद करता रहे। परन्तु प्रभा इस बात का विरोध करती हुई उसे समझाती हैं कि जब वह पढ़-लिखकर प्रोफेसर बन जायेगा तो घरवालों की अधिक अच्छी तरह सहायता कर सकेगा। और तभी दोनों का जीवन सुखी हो सकेगा। इसीलिए वह समर को आगे पढने के लिए प्रोत्साहित करती रहती है।

9) प्रखर व्यक्तित्व - प्रभा सहनशील, व्यवहार कुशल नारी हैं । परन्तु उसमें आत्म-विश्वास भी है। इसी आत्मविश्वास ने उसे स्वाभिमानिनी और संघर्षशील बना दिया है । उसमें सब कुछ सहने की ताकत है। इतनी पढ़ी-लिखी लडकी घर के सभी लोगों की ताने सुनना अपने पति का खुद के साथ बात न करना इन सभी बातोंको वह सहती रहती है। उसमें आत्मविश्वास भी हैं। जब समर उससे यह पूछता है कि -' अच्छा प्रभा, एक बात बताओ। इतने सारी, मुसीबतों और निराशाओं में भी तुम्हारा दिल नहीं घबराता ? जिन दिनों मैं तुमसे बोला नहीं करता था और तुम्हें तंग किया करता था, उन दिनों जरा देर को भी तुम्हारे मन में पराजय की भावना नहीं आईं थी ?" तो वह निहायत आत्मविश्वास भरे स्वर में उत्तर देती है कि मुझे तुम अभी नहीं जानते। मुझ में बहुत जीवनी शक्ति है। इससे भी ज्यादा मुसीबतों में भी मैं विचलित नहीं हो सकती। विवाह से पहले थोडा डर लगा करता था कि आगे जाने कैसे होगा। लगता था कि किसी भी मुसीबत को मैं सह नहीं पाऊँगी। अब जब देख लिया है कि तकलीफ किसे कहते हैं, तो लगता है कि बस, इसी के लिए इतना डरना था ? यही प्रभा का वह आत्मविश्वास है, जिसने उसे इतने भयानक संकटों और अत्याचारों के सामने भी झुकने और टूटने से बनाये रखा था

प्रभा के इस आत्मविश्वास के साथ उसमे स्वाभिमान भी है। प्रभा के स्वाभिमान के चरित्र का वह श्रेष्ठ और उदात्त पक्ष है, जिसने उसे सामान्य से भिन्न एक विशिष्ट नारी बना दिया । 

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सारा आकाश की नायिका प्रभा का चरित्र चित्रण
सारा आकाश की नायिका प्रभा का चरित्र चित्रण: सारा उपन्यास की नायिका प्रभा का चरित्र चित्रण करने के लिए हमें प्रभा के चरित्र की विशेषताओं पर गौर करना हो
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