समर की अम्मा का चरित्र चित्रण - समर की अम्मा सामान्य और साधारण हिन्दू परिवारों की उन बड़ी-बूढियों की प्रतीक है, जिनमें अपने घर वालों ने पक्षपात और अन्
समर की अम्मा का चरित्र चित्रण - Samar Ki Amma Ka Charitra Chitran
समर की अम्मा का चरित्र चित्रण - समर की अम्मा सामान्य और साधारण हिन्दू परिवारों की उन बड़ी-बूढियों की प्रतीक है, जिनमें अपने घर वालों ने पक्षपात और अन्याय करते रहने की प्रवृत्ति स्वाभाविक पाई जाती हैं परन्तु अम्मा का यह रूप बहुत धीरे धीरे ही खुल पाता है। आरंभ में वह समर की शादी से असन्तुष्ट और प्रसन्न दोनों ही दिखाई पड़ती है। असन्तुष्ट इसलिए है कि इस शादी में उन्हें मनवाहा दहेज नहीं मिल सका है, इसलिए उनका शादी करने का हौसला ही खत्म हो गया है। इसी बात पर वे अपने भाई को भी, जिन्होंने यह शादी करवाई थी, दो-एक कड़वी बातें सुना देती है, और वे उनके घर आना बन्द कर देते हैं।
अम्मा प्रसन्न इस बात से हैं कि चलो, दहेज में कुछ नहीं मिला तो कोई बात नहीं, घर में एक सुन्दर और पढी-लिखी बहू तो आ गई। परन्तु भाभी द्वारा प्रभा के विरुद्ध निरन्तर कान भरे जाने से उनकी यह प्रसन्नता क्षण स्थायी बनकर रह जाती है। समर और प्रभा के परस्पर न बोलने का सारा दोष वह प्रभा के सिर ही मढ देती है । हमारे यहाँ की अधिकांश सासरबेटों को दोष न देकर सदैव बहुओं को ही दोष देते हैं। भाभी द्वारा बहकाए जाने पर अम्मा समर की दूसरी शादी कर देने की बात सोचने लगती है।
अम्मा के चरित्र की विशेषताएं
- सास का पक्षपात पूर्ण रूप
- पक्षपात से भरी माँ
- विशेष चरित्र का अभाव
१) सास का पक्षपात पूर्ण रूप - प्रभा के दोबारा आने पर अम्मा का जो नया रूप उभरता है, वह हिन्दू परिवारों में बदनाम अत्याचारी सास का रूप है। अम्मा स्वयं बीमार बनी, खाट पर बैठी माला फेरती रहती हैं। घर के किसी भी काम से हाथ तक नहीं लगाती। प्रभा के आ जाने पर घर के सारे काम, धीरे-धीरे प्रमा को ही सौंप दिये जाते। भाभी गर्भवती हैं, इसलिए उनसे कोई काम नहीं करवाया जाता। अम्मा इस बात से सन्तुष्ट-सी प्रतीत होती हैं कि समर प्रभा से नहीं बोलता। अत: समर उसकी हिमायत लेगा, इसका सवाल ही नहीं उठता। प्रभा से अनजाने कोई गलती हो जाने पर उसकी खूब फजीहत की जाती हैं, उल्टी सीधी बातें सुनाई जाती है। परन्तु अम्मा कभी उससे सीधे मुँह नहीं बोलती।
2) पक्षपात से भरी माँ - अम्मा दोनों बहुओं के साथ व्यवहार करने में तो पक्षपात करती ही है, बल्कि अपने पुत्रों में भी भेदभाव रखती है । जब समर प्रभा से बोलने लगता है तो वे समर से भी असन्तुष्ट हो जाती है । क्योंकि समर की दूसरी शादी करने की उनकी योजना पर पानी फिर जाता है। अब समर जब भी प्रभा की किसी जरूरत को पूरा करने का उनसे आग्रह करता है, तो वे बहाने बनाकर टाल देती है। साथ ही यह इल्जाम भी लगाती है कि प्रभा ही समर को सिखा-पढ़ाकर सारी बातें कहलवाती रहती हैं। अमर अम्माका सबसे लाडला बेटा प्रतीत होता है। वह आवारागर्दी करता रहता है परन्तु अम्मा उससे कुछ भी नहीं करती। जब वह प्रभा के साथ बदतमीजी से पेश आता है और इसे देख जब समर उसे एक थप्पड देता है तो अम्मा अमरर की तरफदारी ले समर को खूब डांटती है, लेकिन अमर से कुछ भी नहीं कहती। समर को स्वार्थी समझाती है।
अम्मा की दूसरी आदत यह हैं कि वे हरदम, छोटी-छोटी बातों को बाबूजी के कान में डालती रहती है। जिस बात को स्वयं नहीं कहना चाहती, उन्हें बाबूनी से कहलाती रहती हैं। समर अब प्रभा के कहने पर चलने लगा है, यह बाते वे अपने भाई (कंबन मामा ) और बाबूजी से कहती है, और फिर मामा इसी बात को लेकर समर को उपदेश देते हैं। महीना बीत जाने पर भी समर ने अपनी तनखा में से एक पैसा भी घर में नहीं दिया है, यह सूचना बाबूजी को उन्हीं से मिलती है। फिर इसी बात को लेकर समर को मारपीट कर घर से निकल जाने को कहा जाता है। यदि अम्मा चाहती तो घर में शान्ति बनी रहती। अम्मा के अन्याय और पक्षपात का एक उग्र रूप सामने आता हूँ, जब मुन्नी का पति उसे लेने आया है, मुन्नी अम्मा की बेटी है, इसलिए निर्दयी-अत्याचारी पति के साथ उसे भेजने का अम्मा घोर विरोध करती है, परन्तु जब से एक परायी बेटी, अपनी बहू प्रभा को हरदम सताती रहती हैं, तब उन्हें इस बात का ख्याल नहीं आता कि प्रभा भी किसी माँ की बेटी है। सास और माँ -एक ही नारी के इन दोनों रूपों में जो विषमता मिलती है, अम्मा उसकी सुन्दर और सटीक उदाहरण है।
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