मैं हार गई कहानी की शिल्पगत विशेषताएं: मन्नू भंडारी ने अपनी कहानियों में दृष्टिकोण का उचित चुनाव किया है। 'मैं हार गई मन्नू भंडारी की प्रथम पुरूष के द
मैं हार गई कहानी की शिल्पगत विशेषताएं
मैं हार गई कहानी की शिल्पगत विशेषताएं: मन्नू भंडारी ने अपनी कहानियों में दृष्टिकोण का उचित चुनाव किया है। 'मैं हार गई मन्नू भंडारी की प्रथम पुरूष के दृष्टिकोण से लिखी गई कहानी है। "कहानी में कथा-कथक नायिका अपनी असफलता को व्यक्त करती है। आदर्श और समाजसेवी नेता का निर्माण न वह उच्चवर्ग में कर पाती है न गरीब वर्ग में और अंत में अपनी विवशता व्यक्त करती हुई कहती है- "उसने तो अपने किए का फल पा लिया, पर मैं समस्या का समाधान नहीं पा सकी। इस बार की असफलता ने तो बस मुझे रूला दिया। अब तो इतनी हिम्मत भी नहीं रही कि एक बार फिर मध्यम वर्ग में अपना नेता उत्पन्न करके फिर से प्रयास करती। इन दो हत्याओं के भार से ही मेरी गर्दन टूटी जा रही थी और हत्या का पाप ढोने की न इच्छा थी न शक्ति ही और अपने सारे अहं को तिलांजलि देकर बहुत ही ईमानदारी से मैं कहती हूँ कि मेरा रोम-रोम महसूस कर रहा था कि कवि भरी सभा में शान के साथ जो नहला फटकार गया था अब उस पर इक्का तो क्या मैं दुग्गी भी न मार सकी। मैं हार गई बुरी तरह हार गई।"
कथा-साहित्य में संवाद का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। संवाद कथ्य की संवेदना और पात्रों की मनः स्थिति की सही पहचान कराते हैं। वे कथा को गति प्रदान करते हुए पात्रों का आत्म-विश्लेषण करके उनकी छटपटाहट को चित्रित करते हैं। मन्नू भंडारी ने संवाद शैली का विशिष्ट रूप में प्रयोग किया है। वे अपनी कुछ कहानियों में सीधे पाठकों से बात करती है। "मैं हार गई कहानी पूरी संवाद शैली में लिखी गई है। लेखिका सर्वगुण संपन्न नेता का निर्माण करना चाहती है, वह अपने महान नेता को लेकर सीधे पाठकों से संवाद करती हैं- "मन की आशाएँ और उमंगे जैसे बढ़ती हैं, वैसे ही मेरा नेता भी बढ़ने लगा। थोड़ा बड़ा हुआ तो गांव के स्कूल में ही उसकी शिक्षा प्रारम्भ हुई । यद्यपि मैं इस प्रबन्ध से विशेष सन्तुष्ट नहीं थी, पर स्वयं ही मैंने परिस्थिति बना डाली थी कि इसके सिवाय कोई चारा नहीं था। धीरे-धीरे उसने मिडिल पास किया। यहाँ तक आते-आते उसने संसार के सभी महान व्यक्तियों की जीवनियां और क्रान्तियों के इतिहास पढ़ डाले। देखिए, आप बीच में ही थे मत पूछ बैठिए कि आठवीं का बच्चा इन सबको कैसे समझ सकता है? यह तो एकदम अस्वाभाविक बात है। इस समय मैं आपके किसी भी प्रश्न का जवाब देने की मनः स्थिति में नहीं हूँ। आप यह न भूलें कि यह बालक एक महान भावी नेता है। हाँ, तो यह सब पढ़कर उसके सीने में बड़े-बड़े अरमान मचलने लगे,
बड़े-बड़े सपने साकार होने लगे, बड़ी-बड़ी उमंगे करवटें लेने लगीं।" मन्नू भंडारी की भाषा की एक महत्वपूर्ण विशेषता है शब्द प्रयोग । मन्नू भंडारी परिवेश और पात्र के अनुरूप भाषा का प्रयोग करती है। परिणामस्वरूप उनकी भाषा में शुद्ध संस्कृत के शब्दों के साथ-साथ देशज और अरबी, फारसी और अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। मैं हार गई कहानी में अंग्रेजी, ग्रामीण, उर्दू, अरबी, फारसी, संस्कृति के शब्द देखने को मिलते हैं। अंग्रेजी शब्द जैसे हॉल, स्कूल, मिडिल, मैट्रिक, कॉलेज, कॉफी हाऊस, सिल्क सिगरेट, सेंट बार, ड्राईवर ग्रामीण शब्द बाँछे, छमिया, छमाका, उर्दू शब्द फजीहत, नापाक, फारसी शब्द तबाह, अरबी शब्द नक्शा, सलाह-मशविरा जिस्म, जलालत, लुत्फ़ । संस्कृत शब्द हर्ष, प्राण, क्षयग्रस्त, स्रष्टा, रूग्ण, जघन्य विधाता, क्षीण, क्षमा, अशिष्ट आदि देखने को मिलते हैं। इसके अतिरिक्त यथा तथा मुहावरों का प्रयोग भी मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में देखने को मिलता है। 'मैं हार गई' कहानी में नाक में दम करना, काठ का उल्लू जैसे मुहावरों का प्रयोग देखने को मिलता है
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