जीप पर सवार इल्लियाँ कहानी की मूल संवेदना : इल्ली एक प्रकार का चने में लगने वाला कीड़ा होता है। व्यंग्यकार शरद जोशी ने जब से एक तरफ यह सुना था कि 'समध
जीप पर सवार इल्लियाँ कहानी की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।
जीप पर सवार इल्लियाँ कहानी की मूल संवेदना : इल्ली एक प्रकार का चने में लगने वाला कीड़ा होता है। व्यंग्यकार शरद जोशी ने जब से एक तरफ यह सुना था कि 'समधन तेरी घोड़ी चने के खेत में' और दूसरी तरफ ‘चने के झाड़ में चढ़ने वाली बात'। तब से व्यंग्यकार हमेशा इस दुविधा में रहता था कि चने का पेड़ होता है या पौधा। तभी अखबारों की सुर्खियों में चने में इल्ली के लगने की चर्चा जोर पकड़ लेती है।
इसी बीच लेखक अपने एक बुध्दिमान मित्र से मिलता है और उनके बीच इल्ली को लेकर चर्चा होती है। वे इला और इल्ली में अंतर बताते हुए कहते है कि ‘इला’ अन्न की अधिष्ठात्री देवी है अर्थात पृथ्वी । 'इल्ली' अन्न की नष्टार्थी देवी। साथ ही यह भी बताया कि ये इल्ली इसी इला की बेटी है और बेटी अपने माँ की कमाई खा रही है। तभी लेखक की पुत्री इल्ली संबंधी ज्ञान का परिचय देते हुए कहती है। कि ‘प्राकृतिक विज्ञान' भाग चार में बताया गया है कि इल्ली से तितली बनती है। तितली जो फूलों पर मडराती हैं रस पीती है और उड़ जाती हैं। इन सारी बातों को लेकर लेखक और भी दुविधा में आ जाता है।
तभी लेखक अपने एक मित्र के पास पहुँच जाते हैं जो कृषि विभाग में अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। उसी दौरान लेखक के मित्र को अपने एक अधिकारी को लेकर चने के खेतों का मुआइना करने जाना पड़ता है। लेखक भी उनके साथ हो लेते हैं। वहाँ पहुँचने पर वे देखते हैं कि किस प्रकार सरकारी दफ्तरों में छोटे अधिकारी अपने बड़े अधिकारी को खुश करने के लिए उसकी हाँ में हाँ मिलाते हैं। और अंत में बड़ा अधिकारी अपने घर के लिए हरे चने लदवा लेता है। अब तीनों गाड़ी में बैठकर उन चनों को खाने लगते हैं। तभी लेखक को एहसास हो जाता है कि इल्ली खेतों में नहीं हैं बल्कि उनके प्रतीक गाड़ी में बैठे ये ऑफिसर ही हैं। जो किसान को डरा धमकाकर उसकी मेहनत पर सेंध लगा देते हैं।
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