चित्रलेखा उपन्यास का परिवेश: किसी भी साहित्यिक विधा में कथ्य को सजीव, यथार्थपरक एवं अनुभूति प्रवण बनाने के लिए उससे संबध्द परिवेश को प्रस्तुत करना आवश
चित्रलेखा उपन्यास का परिवेश Chitralekha Upanyas ka Parivesh
चित्रलेखा उपन्यास का परिवेश: किसी भी साहित्यिक विधा में कथ्य को सजीव, यथार्थपरक एवं अनुभूति प्रवण बनाने के लिए उससे संबध्द परिवेश को प्रस्तुत करना आवश्यक है। भगवती चरण वर्मा के उपन्यास चित्रलेखा में परिवेश का सशक्त चित्र उपलब्ध है। इसमें निहित दृश्यविधानों में तत्कालीन वातावरण और स्थिति को स्पष्ट एवं साकार करने की पर्याप्त क्षमता है। उन्होंने अपने चित्रलेखा उपन्यास में प्रकृति वर्णन की अपेक्षा वस्तु वर्णन को प्रधानता दी है। वस्तु-वर्णन में वाटिका, बाजार, शहर, नगर, नदी, पर्वत, मंदिर, गांव आदि का समावेश किया जाता है।
भगवती चरण वर्मा ने अपने चित्रलेखा उपन्यास में पात्रों का चरित्र चित्रण परिवेश के अनुसार ही किया है। 'चित्रलेखा' में ऐतिहासिक वातावरण के अनुसार ही ऐतिहासिक पात्रों का चित्रण किया है।
उपन्यास को नित्य सुलभ बनाने के लिए प्राचीन उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है। मंत्रणाकक्ष में राजसी वैभव दिखाना आवश्यक है। बीजगुप्त के राजमहल में सिंहासन, मदिरा, रथ, शयनकक्ष इत्यादि का वर्णन है। साथ ही काशी, गंगा नदी, गंगा तट, वृक्ष, आश्रम इत्यादि का भी वर्णन हुआ है। एक अमीर सामंत होने के कारण बीजगुप्त की वेशभूषा सामंतों के समान और चित्रलेखा की नर्तकी तथा कुमारगिरि की वेशभूषा योगी के समान चित्रित करने की कोशिश की गयी है। उपन्यास कुल ‘बाईस' परिदृश्यो में विभाजित है। प्रत्येक परिदृश्य की घटनाएँ अपने परिवेश के साथ ही घटित होती हैं। इसलिए पूरे उपन्यास में एक निरंतरता बनी रहतीहै जो पाठक को अद्यांत बाँध कर रखती है।
यह कहा जा सकता है कि 'भगवतीचरण वर्मा' के उपन्यास 'चित्रलेखा' में देशकाल एवं वातावरण का सजीवता, यथार्थता, मनोवैज्ञानिकता और पात्रनुकूलता के साथ चित्रित हुआ है।
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