Jeep par Sawar Illian Summary in Hindi: इस लेख में हमने जगदीश चंद्र माथुर द्वारा रचित कहानी भोर का तारा एकांकी का सारांश का वर्णन किया है। जिसे पढ़कर प
Jeep par Sawar Illian Summary in Hindi: इस लेख में हमने जगदीश चंद्र माथुर द्वारा रचित कहानी भोर का तारा एकांकी का सारांश का वर्णन किया है। जिसे पढ़कर पाठक भोर का तारा एकांकी की Summary जान पाएंगे।
भोर का तारा एकांकी का सारांश - Bhor ka Tara Ekanki ka Saransh
भोर का तारा एकांकी का सारांश : ‘भोर का तारा’ एकांकी में श्री जगदीशचन्द्र माथुर ने कवि और राजनीतिज्ञ की महत्ता को स्थापित किया है। शांति के अवसर पर श्रृंगार में डूबे रहनेवाले वीर सैनिक युध्द के नगाड़े बजते ही केसरिया बाना पहन कर युध्द के लिए तैयार हो जाता है। वैसे ही कवि या रचनाकार दोहरा व्यक्तित्व रखता है।
गुप्त साम्राज्य की राजधानी उज्जयिनी में एक साधारण कवि शेखर का गृह। सब वस्तुएँ अस्त-व्यस्त बाई ओर एक तख्त पर मैली फटी हुई चादर बिद्दी है । उस पर एक चौकी भी रखी है और लेखनी इत्यादि भी। इधर- उधर भोजपत्र (या कागज) बिखरे हुए पड़े हैं। एक तिपाई भी है जिस पर कुछ पात्र रखे हुए हैं।
यह एकांकी कर्तव्य और भावना के संयोग द्वारा आदर्श को स्थापित करती है। इसमें शेखर, माधव व छाया तीन मुख्य पात्र है। शेखर और माधव दोस्त हैं। दोनों में वार्तालाप होता है। छाया शेखर की प्रियतमा है। कवि फूल से भी कोमल भावमयी कविता रचकर सपनों का संसार निर्मित करता है, किंतु अवसर या प्रसंग आने पर बज्र से भी कठोर लिखकर, सैनिकों को प्रोत्साहित कर देश की सुरक्षा में योगदान देता है। अतः कवि राजनीतिज्ञ अथवा सैनिक से भी श्रेष्ठ साबित होता है। भोर का तारा एकांकी में प्रेमी जीवन की मानसिकता पर भी सवाल उठाया गया है।
छाया साधारण कवि शेखर के कला की पुजारिन और प्रियतमा भी है। माधव शेखर से प्रार्थना करता है कि वह अपनी ओजमयी कविता से गाँव-गाँव जाकर वह आग फैला दे, जिससे हजारों लाखों भुजाये अपने सम्राट और देश की रक्षा के लिए शस्त्र हाथ में ले ले। शेखर का भावुक हृदय परिवर्तित हो जाता है। वह अपने कर्तव्यपथ को समझ जाता हैं।
छाया को माधव वह यह बात बहुत चुभती है किन्तु शेखर को उसके प्यार से दूर ले जाने के वजह से माधव को डाटती है। छाया के अनुसार- 'अत्यंत पीड़ित स्वर में माधव तुमने वह नारी सुलभ स्वभाव से कुछ तो मेरा प्रभात नष्ट कर दिया।' वह विचलित हो जाती है। छाया शेखर के काव्य और प्रेम के प्रति इतनी अधिक स्वार्थी हो जाती है कि वह अपने कर्तव्य को भूल जाती है। माधव के अनुसार 'छाया मैंने तुम्हारा प्रभात नष्ट नहीं किया । प्रभात तो अब होगा, शेखर अब तक भोर का तारा था अब प्रभात का सूर्य होगा'
माधव के समझाने पर छाया मस्तक उठाती है और अपने प्रेम की कर्तव्य के लिए बलिदान कर देती है। अपने पति की प्रतिष्ठा व अपने देश की सुरक्षा के लिए अपने हृदय को कठोर बना लेती है।
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