Talab ki Atmakatha Essay in Hindi, "तालाब की आत्मकथा Essay ", "Talab ki Atmakatha Essay in Hindi " कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के
Talab ki Atmakatha Essay in Hindi : मित्रों आज हमने तालाब की आत्मकथा पर निबंध लिखा है इसमें हमने तालाब की वर्तमान और पुरानी स्थिति का वर्णन किया है.
यह निबंध हमने अलग-अलग शब्द सीमा में कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के लिए लिखा है इस निबंध की सहायता से विद्यार्थी परीक्षाओं में तालाब की आत्मकथा लिख सकते है.
तालाब की आत्मकथा Essay in Hindi 200 words
मैं एक तालाब हूँ। मेरा जन्म बरसात के पानी से हुआ है। बरसो से मैं जंगल के बीच रह रहा हूँ। सारे जीव जंतु तथा मानव मुझे बहुत प्यार करते हैं। वे हमेशा आकर मुझसे पानी पीते थे। मुझे गर्मी बिलकुल पसंद नहीं है । गर्मी में मैं सूखकर बिलकुल निर्जीव हो जाता हूँ। सारे जीव-जंतु बड़ी उम्मीद से मुझे देखते है पर मैं मजबूर लाचार उन्हें पानी तक नहीं पीला सकता। पर जैसे ही बरसात का मौसम आता है मुझमे नए जीवन का संचार होता है । मैं फिर से पानी से भर जाता हूँ। इसी पानी से मैंने नए जीवन की सृष्टि होते देखा है। गर्मी से परेशान जानवरो को खुशी से नहाते देखा है। दुश्मनों को मैंने अपने किनारे पर मित्र बनते देखा है।
एक समय में मैं एक साफ़ और स्वच्छ तालाब हुआ करता था। मनुष्य के बढ़ते विकास तथा आबादी ने मेरा जीना मुश्किल कर दिया है। हाल ही में प्रदुषण बढ़ जाने के कारण में भी दूषित हो गया हूँ । मनुष्यो ने मुझे कचरे का ढेर बना दिया है। आजकल मेरे अंदर पानी काम और कचरा ज्यादा हो गया है । सांस लेना दूभर हो गया है । मनुष्यो ने मुझे केमिकल से लबालब भर दिया है। जानवर भी अब मुझे अपवित्र समझ कर मेरे पास नहीं आते। पहले मुझमे ढेर सारी मछलियाँ और अन्य जल जीव रहते थे लेकिन अब वे सब प्रदूषण के कारण मर गए हैं। उनके मुझमे न होने के कारण में बहुत अकेला महसूस करता हूँ। मैं बस यही चाहता हूँ कि मैं पहले जैसा साफ़ सुथरा हो जाऊँ।
तालाब की आत्मकथा पर निबंध 300 words
मैं तालाब हूं और आज मैं आपको अपनी आत्मकथा सुनाऊंगा। मेरा अस्तित्व है वर्षों पुराना है। जब किसी गड्ढे में बरसात या बाढ़ आदि का पानी जमा हो जाता है तो मेरा यानि तालाब का जन्म होता है। मैं किसी भी बड़े गड्ढे में अपना स्थान बना लेता हूं। मैं अक्सर जंगल, खेत-खलियान, गांव में पाया जाता हूं।
कई लोग मुझे सरोवर या कुंड भी सरोवर भी कहकर पुकारते हैं परन्तु आम बोलचाल में मुझे तालाब ही कहा जाता है। मुझे कुछ स्थानों पर पोखर और बावड़ी के नाम से भी जाना जाता है। मेरे अंदर नदियों, झीलों और बारिश का पानी समाया होता है। प्राचीन काल में जब हरियाली अधिक थी, मैं 12 महीनों पानी से लबालब भरा रहता था क्योंकि वर्षा भी अधिक होती थी।
मेरा जलपान करके जंगल के पशु-पक्षी बहुत खुश होते है। मैं उनकी प्यास बुझाने का प्रमुख सहारा हूं। ग्रामीण लोग मेरे पानी से अपने खेतों की सिंचाई करते हैं। जिससे अच्छी फसल की पैदावार होती है और गरीब किसान खुश रहते है।
मैं कई स्थानों पर प्राकृतिक रूप से पाया जाता हूं तो कई जगह मुझे राजा महाराजाओं द्वारा बनाया गया है। कुछ स्थानों पर मैं छोटा होता हूं तो कुछ स्थानों पर मैं बहुत विशाल होता हूं।
वर्तमान में नई पीढ़ी द्वारा मुझे भुलाया जा रहा है मेरा अस्तित्व खतरे में है। अब तो गर्मियों का मौसम आते आते मैं पूरा सूख जाता हूं फिर ऊपर से मानव द्वारा मेरे अंदर कचरा और केमिकल डालकर मुझे प्रदूषित किया जाता है जिस कारण मेरा जल पीने योग्य नहीं रहता है।
मैं आज बहुत दुखी हूं क्योंकि जो जीव-जंतु कभी मेरा पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते थे, आज वही जीव-जंतु मेरा पानी पीकर अपने प्राण त्याग रहे हैं। मेरा आप सभी मनुष्यों से नम्र निवेदन है कि मुझे पुन: जीवनदान दे और प्रदूषित न करें। मैं भी आपको बदले में जीवन जीने के लिए अमूल्य जल प्रदान करूंगा।
Talab ki Atmakatha Essay in Hindi 350 words
मैं तालाब हूं मेरी उत्पत्ति बरसात के पानी से हुई है। मेरा आकार झील से छोटा होता है। समय के साथ मेरे नाम बदलते रहे हैं पहले लोग मुझे सरोवर या जलाशय कहकर पुकारते थे पर अब मुझे तालाब के नाम से जाना जाता है।मैं धरती पर प्रत्येक स्थान पर पाया जाता हूँ। कहीं जंगल में तो, कहीं गांव में कहीं पहाड़ की चोटी पर, तो कहीं गांव के आसपास में नजर आ जाता हूं।
मेरा निर्माण वर्षा, बाढ़, झील-झरनों और नदियों के जल से होता है। जंगल के सभी जीव जंतु मेरे पास आकर मेरे जल से अपनी प्यास बुझाते है। मेरा आकार और गहराई अलग-अलग स्थानों के अनुसार बदलती रहती हैं। मैं अपने जल से अपने आसपास के पेड़ पौधों को नव जीवन प्रदान करता हूं।
सभी प्राणी मेरा जल पीकर मुझे धन्यवाद कहते है। हर गांव के आसपास मेरा निवास स्थान होने के कारण गांव के लोग मेरे जल से खेतों की सिंचाई करते हैं। वैसे तो मैं वर्ष भर पानी से लबालब भरा रहता हूं लेकिन वर्तमान में वर्षा की कमी के चलते मैं गर्मियों में सूख जाता हूं जिसके कारण पशु-पक्षियों की प्यास से तड़पकर मृत्यु हो जाती है। यह देखकर मुझे बहुत ही दु:ख होता है लेकिन मैं चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाता हूं।
परन्तु हाल ही में मनुष्यों के कारण मेरा अस्तित्व संकट में पड़ गया है। मनुष्य मेरे अंदर घरेलू कचरा, फैक्ट्रियों विषैला पदार्थ डाल रहे है। शहरों की सारी गंदगी मेरे अंदर उडेल दी जाती है। जिसके कारण मेरा जल दूषित हो जाता है और मेरे जल से दुर्गंध आने लग जाती है जिसके कारण कोई भी पशु पक्षी मेरा जल पीना पसंद नहीं करते है।
कचरे और मिट्टी के भराव के कारण धीरे धीरे में तालाब की जगह कचरे का ढेर बन जाता हूं जिसके कारण मेरे अंदर रहने वाली मछलियां मर जाती है आसपास की पेड़ पौधे सूख जाते है साथ ही आसपास की भूमि का सारा जल प्रदूषित हो जाता है। अब मैं कुछ ही स्थानों पर दिखाई देता हूं मेरा अस्तित्व वर्तमान में विलुप्त होने की कगार पर है अगर जल्द ही मनुष्य कोई ठोस कदम नहीं उठाएंगे तो पृथ्वी पर से मेरा नामो निशान मिट जाएगा।
Talab ki Atmakatha Hindi Nibandh 800 words
मैं एक तालाब हूं। मेरी जन्म की कहानी बड़ी ही विचित्र है। आज मैं मेरी आत्मकथा सुनाने जा रहा हूं। मैं पृथ्वी पर आदिकाल से विद्यमान हूं। पृथ्वी का प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में मेरा बहुत बड़ा योगदान है।
मैं प्राकृतिक रूप से जंगल गांव और पहाड़ों और झरनों के पास पाया जाता हूं। लेकिन अप्राकृतिक रूप से मुझे मनुष्य द्वारा भी बनाया जाता है। जहां पर झील, नदी नहीं पहुंच पाते वहां पर मेरा अस्तित्व होता है। गांव में मेरे अलग-अलग नाम रखे जाते है कई गांवों के नाम तो मेरे नाम से ही पहचाने जाते है।
मैं कभी वर्षा के जल से भर जाता हूं तो कभी नदी और झील के पानी से लबालब हो जाता हूं. मुझे कहीं पर तालाब तो कहीं पर पोखर, सरोवर और बावड़ी के नाम से जाना जाता है। मेरा आकार छोटा, मध्यम और विशाल होता है। मैं प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर चलता हूं और पृथ्वी पर रहने वाले जीव-जंतु, पशु-पक्षियों, और इंसानों को जीवन जीने के लिए अमूल्य जल देता हूं।
कुछ जंगल एवं गांव में मैं पानी का एकमात्र स्त्रोत होता हूं. जंगल में में बड़े छोटे रूप में कई जगह पर पाया जाता हूं जहां पर जंगल के सभी प्राणी आकर अपनी प्यास बुझाते है मैंने मरते हुए प्राणियों को जीवन दिया है। मैं जंगल के पेड़-पौधों को पानी देकर उन्हें सूखने से बचाता हूं।
मेरे जल के अंदर छोटे जीव और रंग बिरंगी मछलियां अपना जीवन खुशी से व्यतीत करते हैं और मेरी सुंदरता में चार चांद लगा देते है। इनको हंसता खेलता देखकर मैं भी खुश हो जाता हूं। गर्मियों के दिनों में सभी जीव जंतु एवं गांव के बच्चे गर्मी से राहत पाने के लिए मेरे जल से नहाने आते है वहां खूब हंसी मजाक और तैराकी करते है.
पुराने जमाने में जब मानव जनसंख्या कम थी तब मैं पूरे वर्ष भर पानी से लबालब भरा रहता था लेकिन अब 3 से 4 महीने तक ही पानी से भरा हुआ रहता हूं गर्मियों में तो मैं सुख के निर्जीव बन जाता हूं. जिस कारण मेरे ऊपर आश्रित पशु पक्षी पानी के लिए पूरे जंगल में इधर उधर मारे मारे फिरते रहते है.
जल नहीं मिलने के कारण कई पशु पक्षियों की मृत्यु भी हो जाती है जिससे मुझे बहुत दुख पहुंचता है. मैंने जीवन का हर रंग देखा है मैंने जीव जंतुओं का प्रेम, दोस्ती देखा है, उनकी लड़ाई देखी है, उनके रहन-सहन का तरीका देखा है.
मैंने पृथ्वी पर सभी ऋतुओं को देखा है। मैंने गर्मियों का सूखा देखा है तो सर्दियों में मेरा पानी बर्फ भी बना है। मैंने बदलते हुए पर्यावरण को देखा है, मैंने राजा महाराजाओं के राज को देखा है समय के साथ साथ लोगों के जीवन को बदलते देखा है और उसी के साथ मेरा जीवन भी बदल रहा है। मेरे जीवन पर संकट के बादल छाए हुए है। जैसे जैसे समय बदल रहा है मुझे मानव द्वारा भूलाया जा रहा है जहां पर मैं जिंदा हूं वहां पर मेरे ऊपर अत्याचार किया जा रहा है मेरे अंदर कल कारखानों और फैक्ट्रियों का दूषित कचरा और केमिकल्स डाले जा रहे है।
बढ़ती हुई जनसंख्या ने अतिक्रमण करके मेरे आकार को छोटा कर दिया है। भू-माफियाओं ने मिलकर मेरे ऊपर कब्जा बना लिया है और ऊंची ऊंची इमारतें बना दी है कहीं पर मेरी अमूल्य मिट्टी को खोदकर बेच दिया गया है तो कहीं पर मेरे जल का दुरुपयोग हो रहा है। जल के दुरुपयोग के कारण मैं जल्दी ही सूख जाता हूं जिससे आसपास के प्राणी जल बिना प्यासे ही मर जाते है।
मानव ने मेरे दिल को इस तरह से खराब कर दिया है कि मेरे अंदर रहने वाली मछलियां और अन्य छोटे जीवो का जीवन संकट ग्रस्त हो गया है। उनकी मृत्यु असमय में ही होने लगी है. जंगल के जीव जंतु अब मेरे जल को पीना पसंद नहीं करते है, उन्हें मेरे पास आने से ही डर लगने लगा है। मनुष्य ने मेरे अंदर इतना कचरा फेंका है कि मैं अब तालाब की जगह कूड़े का ढेर नजर आने लगा हूं। इसी कारण मेरे चारों ओर दुर्गंध ही दुर्गंध फैल गई है साथ में मेरे आस-पास कई बीमारियां भी पनपने लगी है। मेरे जल में डेंगू फैलाने वाले मच्छर भी बढ़ गए है। मेरी जल में केमिकल मिलने के कारण आसपास के पेड़ पौधे सूख गए है सुनहरी धरती माता भी काली पड़ गई है।
मैं तालाब अमृत के समान जल रखने वाला आज जहर उगलने वाला नाग बन गया हूं। मेरे रहने के कुछ स्थानों पर मिट्टी का भराव कर दिया गया है जिसके कारण वर्षा का जल मेरे अंदर नहीं समा पाता है और मेरा अस्तित्व खत्म सा हो गया है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन सारे तालाब सूख जाएंगे और सारे पुरानी जल के बिना मृत्यु के शिकार हो जाएंगे. मेरे बिना सभी पेड़ पौधे सूख जाएंगे और पृथ्वी से हरियाली नष्ट हो जाएगी। पृथ्वी का जल स्तर गिर जाएगा जिससे सभी प्राणियों को दूषित जल पीने को मजबूर होना पड़ेगा।
यह बहुत ही विडंबना का विषय है कि मैं तालाब जिन मनुष्यों को जीवन देता था आज वही मेरे जीवन के दुश्मन हो गए है। मैं तालाब सभी मनुष्य से निवेदन करना चाहूंगा कि आप मेरे जीवन को बचाए जो तालाब नष्ट हो चुके हैं उन्हें पुन: बनाएं जिससे पृथ्वी का वातावरण भी अच्छा रहेगा और सभी को स्वच्छ और अच्छा जल मिलेगा।
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