दहेज उस धन या सम्पत्ति को कहते हैं जो विवाह के समय कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को दिया जाता है। फेयरचाइल्ड के अनुसार, "दहेज वह धन सम्पत्ति है जो विवाह क
दहेज प्रथा पर निबंध - Dowry System Essay in Hindi
दहेज प्रथा पर निबंध : वर्तमान में दहेज एक गम्भीर समस्या बनी हुई है। इसके कारण माता-पिता के लिए लड़कियों का विवाह एक अभिशाप बन गया है। सामान्यतः दहेज उस धन या सम्पत्ति को कहते हैं जो विवाह के समय कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को दिया जाता है। फेयरचाइल्ड के अनुसार, "दहेज वह धन सम्पत्ति है जो विवाह के अवसर पर लड़की के माता-पिता या अन्य निकट सम्बन्धियों द्वारा दी जाती है।" मैक्स रेडिन (Max Radin) लिखते हैं, “साधारणत: दहेज वह सम्पत्ति है जो एक पुरुष विवाह के समय अपनी पत्नी या उसके परिवार से प्राप्त करता है।"
दहेज की परिभाषा (Definition of Dowry in Hindi)
दहेज निरोधक अधिनियम, 1961 के अनुसार, "दहेज का अर्थ कोई ऐसा सम्पत्ति या मूल्यवान निधि है, जिसे (i) विवाह करने वाले दोनों पक्षों में से एक पक्ष ने दूसरे पक्ष को अथवा (ii) विवाह में भाग लेने वाले दोनों पक्षों में से किसी एक पक्ष के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति ने किसी दूसरे पक्ष अथवा उसके किसी व्यक्ति को विवाह के समय, विवाह के पहले या विवाह के बाद विवाह की आवश्यक शर्त के रूप में दी हो अथवा देना स्वीकार किया हो।" दहेज की यह परिभाषा अत्यन्त विस्तृत है जिसमें वर-मूल्य एवं कन्या-मूल्य दोनों ही आ जाते हैं। साथ ही इसमें उपहार एवं दहेज में अन्तर किया गया है।
दहेज का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। ब्राह्म विवाह में पिता वस्त्र एवं आभूषणों से सुसज्जित कन्या का विवाह योग्य वर के साथ करता था। रामायण एवं महाभारत काल में भी दहेज का प्रचलन था। सीता एवं द्रौपदी आदि को दहेज में आभूषण, घोड़े, हीरे-जवाहरात एवं अनेक बहुमूल्य वस्तुएं देने का उल्लेख किया है। उस समय दहेज कन्या के प्रति स्नेह के कारण स्वेच्छा से ही दिया जाता था। दहेज का प्रचलन राजपूत काल में तेरहवीं एवं चौदहवीं सदी से प्रारम्भ हुआ और कुलीन परिवार अपनी सामाजिक स्थिति के अनुसार दहेज की मांग करने लगे। बाद में अन्य लोगों में भी इसका प्रचलन हुआ। उच्च शिक्षा प्राप्त, धनी, अच्छे व्यवसाय या नौकरी में लगे हुए एवं उच्च कुल के वर को प्राप्त करने के लिए वर्तमान में लड़की के पिता को अच्छा-खासा दहेज देना होता है।
शिक्षा एवं सामाजिक चेतना की वृद्धि के साथ-साथ दहेज का प्रचलन घटने की बजाय बढ़ा दी है और इसने वीभत्स रूप ग्रहण कर लिया है। भारतवर्ष इस प्रथा के लिए विश्वभर में बदनाम है। यहाँ जन्म से ही लड़की को पराया धन कहा जाता है उसके पालन-पोषण पर लड़कों से कम ध्यान दिया जाता है। माता-पिता कन्या को पराया धन समझकर उसके साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार करते हैं। लड़की को अपने साथ दहेज नहीं ले जाने पर ससुराल में ताने सुनने पड़ते हैं। साथ ही दहेज के कारण लड़कियों को जलाकर मार भी दिया जाता है।
दहेज के कारण (Causes of Dowry)
1. जीवन साथी चुनने का सीमित क्षेत्र-जब कन्या का विवाह अपने ही वर्ण, जाति या उपजाति में करना होता है तो विवाह का दायरा बहुत सीमित हो जाता है और योग्य वर के लिए दहेज देना आवश्यक हो जाता
2. बाल-विवाह-बाल-विवाह के कारण वर एवं वधू का चुनाव उनके माता-पिता द्वारा किया जाता है और वे अपने लाभ के लिए दहेज की मांग करते हैं।
3. विवाह की अनिवार्यता-हिन्दुओं में कन्या का विवाह अनिवार्य माना गया है। इसका लाभ उठाकर वर-पक्ष के लोग अधिकाधिक दहेज की मांग करते हैं।
4. कुलीन विवाह-कुलीन विवाह के कारण ऊंचे कुलों के लड़कों की मांग बढ़ जाती है और उन्हें प्राप्त करने के लिए कन्या पक्ष को दहेज देना होता है।
5. शिक्षा एवं सामाजिक प्रतिष्ठा-वर्तमान समय में शिक्षा एवं व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का अधिक महत्त्व होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति अपनी कन्या का विवाह शिक्षित एवं प्रतिष्ठित लड़के के साथ करना चाहता है जिसके लिए उसके काफी दहेज देना होता है क्योंकि ऐसे लड़कों की समाज में कमी पायी जाती है।
6. धन का महत्त्व-वर्तमान में धन का महत्त्व बढ़ गया है और इसके द्वारा व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा निर्धारित होती है। जिस व्यक्ति को अधिक दहेज प्राप्त होता है, उसकी प्रतिष्ठा भी बढ़ जाती है। यही नहीं, बल्कि अधिक दहेज देने वाले व्यक्ति की भी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ जाती है।
7. महंगी शिक्षा-वर्तमान में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए काफी धन खर्च करना पड़ता है जिसे जुटाने के लिए वर पक्ष के लोग दहेज की मांग करते हैं। शिक्षा के लिए लिये गये ऋण का भुगतान भी कई बार दहेज द्वारा किया जाता है।
8. प्रदर्शन एवं झूठी प्रतिष्ठा-अपनी प्रतिष्ठा एवं शान का प्रदर्शन करने के लिए भी लोग अधिकाधिक दहेज लेते एवं देते हैं।
9. गतिशीलता में वृद्धि - वर्तमान समय में यातायात के साधनों की उन्नति एवं विकास हुआ है, नगरीकरण एवं औद्योगीकरण बढ़ा है, परिणामस्वरूप एक जाति एवं उपजाति की गतिशीलता में वृद्धि हुई है और उनके सदस्य दूर-दूर तक फैल गये हैं। इस कारण अपनी ही जाति या उपजाति में वर ढूंढ़ना कठिन हो गया है। फलस्वरूप दहेज-प्रथा को बढ़ावा मिला है।
10. सामाजिक प्रथा-दहेज का प्रचलन समाज में एक सामाजिक प्रथा के रूप में ही पाया जाता है। जो व्यक्ति अपनी कन्या के लिए दहेज देता है वह अपने पुत्र के लिए भी दहेज प्राप्त करना चाहता है।
11. दुष्चक्र (Vicious circle)- दहेज एक दुष्कक्र है जिन लोगों ने अपनी लड़कियों के लिए दहेज दिया है वे भी अवसर आने पर अपने लड़कों के लिए दहेज प्राप्त करना चाहते हैं। इसी प्रकार से लड़के के लिए दहेज प्राप्त करके वे अपनी लड़कियों के विवाह के लिए देने के लिए उसे सुरक्षित रखना चाहते हैं।
दहेज प्रथा के दुष्परिणाम (Evil Effects of Dowry System)
दहेज-प्रथा के परिणामस्वरूप समाज में अनेक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं, इनमें से प्रमुख अन प्रकार हैं1. बालिका वध-दहेज की अधिक मांग होने के कारण कई व्यक्ति कन्या को पैदा होते ही मार डालते हैं।
इसका प्रचलन राजस्थान में विशेष रूप से रहा है, किन्तु वर्तमान में यह प्रथा प्रायः समाप्त हो चुकी है। 2. पारिवारिक विघटन-कम दहेज देने पर कन्या को ससुराल में अनेक प्रकार के कष्ट दिये जाते हैं। दोनों
परिवारों में तनाव एवं संघर्ष पैदा होते हैं और पति-पत्नी का सुखी वैवाहिक जीवन उजड़ जाता है।
3. हत्या एवं आत्महत्या - जिन लड़कियों को अधिक दहेज नहीं दिया जाता उनको ससुराल में अधिक सम्मान नहीं होता, उन्हें कई प्रकार से तंग किया जाता है। इस स्थिति से मुक्ति पाने के लिए बाध्य होकर कुछ लड़कियाँ आत्महत्या तक कर लेती हैं। दहेज के अभाव में कन्या का देर तक विवाह न होने पर उसे सामाजिक निन्दा का पात्र बनना पड़ता है। जब दहेज की मात्रा आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं होती है तो बहू को जला दिया जाता है या उसकी हत्या कर दी जाती है।
4. ऋणग्रस्तता - दहेज देने के लिए कन्या के पिता को रुपया उधार लेना पड़ता है या अपनी जमीन एवं जेवरात, मकान आदि को गिरवी रखना पड़ता है या बेचना पड़ता है परिणामस्वरूप परिवार ऋणग्रस्त हो जाता है। ब्याज की ऊंची दर के कारण उधार लिया हुआ रुपया चुकाना कठिन हो जाता है। अधिक कन्याएं होने पर तो आर्थिक दशा और भी बिगड़ जाती है।
5. निम्न जीवन स्तर - कन्या के लिए दहेज जुटाने के लिए परिवार को अपनी आवश्यकताओं में कटौती करनी पड़ती है। बचत करने के चक्कर में परिवार का जीवन-स्तर गिर जाता है।
6. बहुपत्नी विवाह - दहेज प्राप्त करने के लिए एक व्यक्ति कई विवाह करता है इससे बहुपत्नीत्व का प्रचलन बढ़ता है।
7. बेमेल विवाह - दहेज के अभाव में कन्या का विवाह अशिक्षित, वृद्ध, कुरूप, अपंग एवं अयोग्य व्यक्ति के साथ भी करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में कन्या को जीवन भर कष्ट उठाना पड़ता है।
8. विवाह की समाप्ति - दहेज के अभाव में कई लोग अपने वैवाहिक सम्बन्ध कन्या पक्ष से समाप्त कर देते हैं। कई बार तो दहेज के अभाव में तोरण द्वार से बारात वापस लौट जाती है और कुछ लड़कियों को कुंआरी ही रहना पड़ता है।
9. अनैतिकता - दहेज के अभाव में कई लड़कियों को देर तक विवाह नहीं हो पाता है और वे अपनी यौन इच्छाओं की पूर्ति अनैतिक तरीकों से करती है इससे भ्रष्टाचार बढ़ता है।
10. अपराध को प्रोत्साहन - दहेज जुटाने के लिए कई अपराध भी किये जाते हैं, रिश्वत, चोरी एवं गबन के द्वारा धन एकत्र किया जाता है, आत्महत्या एवं भ्रष्टाचार में वृद्धि होती है।
11. मानसिक बीमारियां - दहेज एकत्र करने एवं योग्य वर की तलाश में माता-पिता चिन्तित रहते हैं। माता-पिता एवं लड़कियों में चिन्ता के कारण कई मानसिक बीमारियां पैदा हो जाती हैं।
12. स्त्रियों की निम्न स्थिति - दहेज के कारण स्त्रियों की सामाजिक स्थिति गिर जाती है, उनका जन्म अपशकुन माना जाता है और उन्हें भावी विपत्ति का सूचक समझा जाता है।
दहेज-प्रथा के लाभ (Merits of Dowry in Hindi)
1. दहेज के कारण कुरूप कन्याओं का भी विवाह हो जाता है।
2. दहेज न जुटाने की स्थिति में कन्याओं का देर तक विवाह न होने से बाल-विवाह समाप्त हो जाते हैं।
3. दहेज के अभाव में देर तक विवाह न होने पर माता-पिता लड़कियों को शिक्षा दिलाते रहते हैं, इससे स्त्री-शिक्षा में वृद्धि होती है।
दहेज-प्रथा को समाप्त करने हेतु सुझाव
हिन्दू समाज के लिए यह उचित समय है कि दहेज की दूषित प्रथा को जिसने अनेक अबोध कन्याओं को आत्महत्या के लिए प्रेरित किया है, समाप्त कर दे। इसे समाप्त करने हेतु निम्नांकित सुझाव दिये जा सकते हैं
1. स्त्री शिक्षा - स्त्री शिक्षा का अधिकाधिक प्रसार किया जाय ताकि वे पढ़-लिखकर स्वयं कमाने लगें। ऐसा होने पर उनकी पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता समाप्त होगी तथा इसके परिणामस्वरूप विवाह की अनिवार्यता भी न रहेगी।
2. जीवन साथी के चुनाव की स्वतन्त्रता - लड़के व लड़कियों को अपना जीवन साथी स्वयं चुनने की स्वतन्त्रता प्राप्त होने पर अपने आप दहेज प्रथा समाप्त हो जायेगी।
3. प्रेम-विवाह - प्रेम विवाह की स्वीकृति होने पर भी दहेज की समस्या समाप्त हो जायेगी।
4. अन्तर्जातीय विवाह - अन्तर्जातीय विवाह की छूट होने पर विवाह का दायरा विस्तृत होगा। परिणामस्वरूप दहेज-प्रथा समाप्त हो सकेगी।
5. लड़कों को स्वावलम्बी बनाया जाय - जब लड़के पढ़-लिखकर स्वयं अर्जन करने लगेंगे तो योग्य वर का अभाव दूर हो जायेगा, उनके लिए प्रतियोगिता कम हो जायेगी फलस्वरूप दहेज भी घट जायेगा।
6. स्वस्थ जनमत - दहेज विरोधी जनमत तैयार किया जाए। लोगों में जाग्रति पैदा की जाए जिससे कि वे दहेज का विरोध करें। इसके लिए अधिकाधिक प्रचार एवं प्रसार के साधनों का उपयोग किया जाए। समाज-सुधारकों एवं युवकों द्वारा इस ओर अपने विशेष प्रयत्न किए जाने चाहिए।
7. दहेज विरोधी क़ानून - दहेज प्रथा की समाप्ति के लिए कठोर कानूनों का निर्माण किया जाए एवं दहेज मांगने वालों को कड़ी-से-कड़ी सजा दी जाए। वर्तमान में 'दहेज निरोधक अधिनियम, 1961' लागू है, परन्तु यह अधिनियम अपनी कई कमियों के कारण दहेज-प्रथा को कम करने में असफल रहा है। वर्तमान में इस अधिनियम को संशोधित कर इसे कठोर बना दिया गया है तथा दो व्यक्तियों को अधिक सजा देने की व्यवस्था की गयी है।
8. युवा आन्दोलन - दहेज-प्रथा को समाप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि युवक स्वयं जागरूक होकर इसका विरोध करें। इसके लिए दृढ़ निश्चय का होना अनिवार्य है।
दहेज निरोधक अधिनियम, 1961 (Dowry Prohibition Act, 1961)
हिन्दू समाज में दहेज की भीषण समस्या को हल करने के लिए भारतीय संसद में मई 1961 में 'दहेज निरोधक अधिनियम' पारित किया गया। इसकी प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं(1) इस अधिनियम में दहेज को इस प्रकार परिभाषित किया गया है: “विवाह के पहले या बाद में विवाह की एक शर्त के रूप में, एक पक्ष या व्यक्ति द्वारा दूसरे पक्ष को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दी गयी कोई भी सम्पत्ति या मूल्यवान वस्तु 'दहेज' कहलायेगी।" (2) विवाह के अवसर पर दी जाने वाली भेंट या उपहार को 'दहेज' नहीं माना जायेगा। (3) दहेज लेने व देने वाले तथा इस कार्य में मदद करने वाले व्यक्ति को छ: माह की जेल और पांच हजार रुपये तक का दण्ड दिया जा सकता है। (4) दहेज लेने व देने सम्बन्धी किया गया कोई भी समझौता गैर-कानूनी होगा। (5) विवाह में भेंट दी गयी वस्तुओं पर कन्या का अधिकार होगा। (6) धारा 7 के अनुसार दहेज सम्बन्धी अपराध की सुनवाई प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट ही कर सकता है और ऐसी शिकायत लिखित रूप में एक वर्ष के अन्दर ही की जानी चाहिए।
इस सन्दर्भ में एक बात उल्लेखनीय है कि दहेज निरोधक अधिनियम में उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश सरकारों ने संशोधन कर इसे कठोर बना दिया है। उत्तर प्रदेश ने 1976 में इस अधिनियम में संशोधन किया जिसके अनुसार विवाह के समय कोई भी पक्ष 5 हजार रुपयों से अधिक खर्च नहीं करेगा जिसमें विवाह के उपहार भी सम्मिलित हैं। अब बिना किसी शिकायत के भी पुलिस और प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट ऐसे मामले की रिपोर्ट तथा जांच कर सकते हैं। 1984 एवं 1986 में दहेज निरोधक अधिनियम, 1961 में संशोधन कर इसे और कठोर बनाया गया। दहेज के विरुद्ध अपराध अब संज्ञेय (Cognizable), गैर-जमानती है तथा अभियुक्त को ही यह प्रमाण देना होता है कि वह निर्दोष है।
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