नृजातीय समूह से क्या तात्पर्य है ? नृजातिकी अथवा संजातीयता को रंग और संस्कृति के आधार पर विश्लेषित किया जा सकता है। नृजातिकी समूह किसी समाज की जनसंख्य
नृजातीय समूह से क्या तात्पर्य है ?
नृजातिकी अथवा संजातीयता को रंग और संस्कृति के आधार पर विश्लेषित किया जा सकता है। नृजातिकी समूह किसी समाज की जनसंख्या का वह भाग है, जो परिवार की पद्धति, भाषा, मनोरंजन, प्रथा, धर्म, संस्कृति एवं उत्पत्ति, आदि के आधार पर अपने को दूसरों से अलग समझता है। दूसरे शब्दों में, एक प्रकार की भाषा, प्रथा, धर्म, परिवार, रंग एवं संस्कृति से सम्बन्धित लोगों के एक समूह को नृजातिकी की संज्ञा दी जा सकती है। समान इतिहास, प्रजाति, जनजाति, वेश-भूषा, खान-पान वाला सामाजिक समूह भी एक नृजातीय समूह है, जिसकी अनुभूति उस समूह एवं अन्य समूहों के सदस्यों को होनी चाहिए। समान आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक हितों की रक्षा एवं अभिव्यक्ति करने वाले समूह को भी संजातीय समूह कहा जा सकता है। एक नृजातिकी समूह की अपनी एक संस्कृति होती है, अतः नृजातिकी एक सांस्कृतिक समूह भी है। भारत एक बहु-नृजातिकी समूह वाला देश भी है।
एक नृजातिकी के लोगों में परस्पर प्रेम, सहयोग एवं संगठन पाया जाता है, उनमें अहम् की भावना पायी जाती है। एक नृजातिकी के लोग दूसरी नृजातिकी के लोगों से अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए अपनी भाषा, वेश-भूषा, रीति-रिवाज एवं उपासना पद्धति की विशेषताओं को बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं। समाजशास्त्रीय भाषा में इसे नृजातिकी केन्द्रित प्रवृत्ति कहते हैं। नृजातिकी के आधार पर एक समूह दूसरे समूह से अपनी दूरी बनाये रखता है। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक दृष्टि से शक्तिशाली नृजातिकी समूह कमजोर नृजातिकी समूह का शोपण करता है, उनके साथ भेद-भाव रखते हैं। इससे समाज में असमानता, संघर्ष एवं तनाव पैदा होता है। भाषा, धर्म और सांस्कृतिक विभेद, संजातीय समस्या के मुख्य कारण हैं। भारत में भाषा, धर्म, सम्प्रदाय एवं प्रान्तीयता की भावना के कारण अनेक तनाव एवं संघर्ष हुए हैं।
कभी-कभी सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लोगों का एक संजातीय समूह के रूप में एकत्रीकरण देखा जा सकता है। ऐसी स्थिति में वे अन्य समूहों के साथ विदेशियों जैसा व्यवहार करते हैं। बिहार का छोटा नागपुर एवं संथाल परगना के आदिवासी अपनी विशिष्ट संस्कृति एवं भापा के कारण एक अलग झारखण्ड राज्य का निर्माण करवा चुके हैं। वे आदिवासियों के अतिरिक्त लोगों को “दीक्क' अर्थात् बाहा शोषणकर्ता की संज्ञा देते हैं, जिसमें जमींदार और साहूकारों को सम्मिलित करते हैं।
कभी-कभी ऐसा ही व्यवहार एक भाषा बोलने वाले अपने प्रान्त में दूसरी भाषा बोलने वालों के साथ भी करते हैं। तमिलनाडु एवं असम में अन्य प्रान्तों के लोगों को बाहर निकालने सम्बन्धी आन्दोलन एवं संघर्ष हुए हैं। कई बार नगरीय लोग गांव वालों के साथ एवं ग्रामीण नगर वालों के साथ भी विदेशियों जैसा व्यवहार करते हैं और उसे संजातीय रूप देने का प्रयत्न करते हैं।
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