दबाव समूह का वर्गीकरण : दबाव समूह का वर्गीकरण किसी एक नहीं, वरन् अनेक आधारों पर किया जाता है। लक्ष्यों की दृष्टि से दबाव समूह 'स्वार्थी' और 'लोकार्थी'
दबाव समूह का वर्गीकरण कीजिए।
दबाव समूह का वर्गीकरण : दबाव समूह का वर्गीकरण किसी एक नहीं, वरन् अनेक आधारों पर किया जाता है और इसी कारण दबाव समूह का वर्गीकरण एक कठिन कार्य हो गया है। सामान्य रूप से यह वर्गीकरण समूहों के लक्ष्य, उनके संगठन की प्रकृति, उनके अस्तित्व की अवधि और कार्यक्षेत्र आदि के आधार पर किया जाता है।
लक्ष्यों की दृष्टि से दबाव समूह 'स्वार्थी' और 'लोकार्थी' नामक दो श्रेणियों में वर्गीकृत किये जा सकते है। श्रमिक संघ, व्यापारी संघ, आदि वर्ग विशेष के हितों की साधना करते हैं। अत: उन्हें स्वार्थी समूह' कहा जाता है, दूसरी ओर गौ सेवा संघ, भारत सेवक समाज या नारी कल्याण संघ लोकार्थी समूह ' कहे जाते हैं। संगठन की दृष्टि से समूहों के दो भेद बताये जाते हैं-औपचारिक और अनौपचारिक। औपचारिक समूह वे होते हैं जिनके संगठन का कोई विधान और निश्चित कार्य-प्रणाली होती है, विधान और निश्चित कार्य-प्रणाली से रहित समूह अनौपचारिक समूह कहे जाते हैं। अस्तित्व की अवधि की दृष्टि से अल्पकालिक समूह और दीर्घकालिक समूह होते हैं। इसी प्रकार कार्य-क्षेत्र के आधार पर जो समूह अत्यन्त सीमित क्षेत्र में कार्य करते हैं, उन्हें स्थानीय तथा जिनका क्षेत्र अखिल देशीय होता है, उन्हें देशव्यापी समूह' कहते हैं।
वर्तमान काल में राजनीति विज्ञान के कुछ विद्वानों द्वारा भी दबाव समूहों के वर्गीकरण का प्रयत्न किया गया है, इनमें प्रमुखतया दो वर्गीकरण सामने आते हैं
प्रथम, ब्लौण्डेल का वर्गीकरण और द्वितीय,आमण्ड का वर्गीकरण लौण्डेल (Blondel) ने दबाव समूहों का वर्गीकरण उनके निर्माण के प्रेरक तत्वों के आधार पर किया है। उनके अनुसार, प्रमुख रूप से दो प्रकार के दबाव समूह होते हैं, प्रथम, सामुदायिक दबाव समूह और द्वितीय, संघात्मक दबाव समूह हैं। वे समूह जिनकी स्थापना के मूल में व्यक्तियों के सामाजिक सम्बन्ध होते हैं, सामुदायिक दबाव समूह कहे जाते हैं तथा वे समूह जिनकी स्थापना के पीछे किसी विशिष्ट लक्ष्य की प्राप्ति प्रेरक तत्व होता है, संघात्मक समूह कहे जाते हैं। ब्लौण्डेल ने इनमें से प्रत्येक को पुनः दो रूपों में विभाजित किया है। सामुदायिक समूह के दो रूप हैं-प्रथम, रूढ़िगत और द्वितीय, संस्थात्मक (Institutional)- इसी प्रकार संघात्मक समूह के दो रूप हैं-प्रथम संरक्षणात्मक और द्वितीय उत्थानात्मक।
आमण्ड ने इन समूहों को 'हित समूहों' का नाम देते हुए इनकी चारित्रिक विशेषताओं को उनके वर्गीकरण का आधार बनाया है। उसके अनुसार, समूहों के चार प्रकार होते हैं
(1) संस्थात्मक (2) असंघात्मक (3) प्रदर्शनात्मक या अनियमित, और (4) संघात्मक।
दबाव समूह का वर्गीकरण
- संस्थानात्मक दबाव समूह,
- समुदायात्मक दबाव समूह,
- असमुदायात्मक दबाव समूह,
- प्रदर्शनकारी या अनियमित दबाव समूह
(1) संस्थानात्मक दबाव समूह -संस्थात्मक दबाव समूह राजनीतिक दलों, विधान मण्डलों, सेना, नौकरशाही इत्यादि में सक्रिय रहते हैं। इनके औपचारिक संगठन होते हैं, ये स्वायत्त रूप से क्रियाशील रहते हैं अथवा विभिन्न संस्थाओं की छत्रछाया में पोषित होते हैं। ये समूह अपने हितों की अभिव्यक्ति के साथ-साथ अन्य सामाजिक समुदायों के हितों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं।
(2) समुदायात्मक दबाव समूह -समुदायात्मक दबाव समूह हितों की अभिव्यक्ति के विशेषीकृत संघ होते हैं। इनकी मुख्य विशेषता अपने विशिष्ट हितों की पूर्ति करना होता है। इनमें प्रमुख हैं-व्यावसायिक संगठन, कृषक संगठन, श्रमिक संगठन और सरकारी कर्मचारियों के संगठन, आदि।
(3) असमुदायात्मक दबाव समूह - ये वे दबाव समूह हैं जो धर्म, जाति, रक्त सम्बन्ध अथवा अन्य किसी परम्परागत लक्षण पर आधारित होते हैं। ये अनौपचारिक तथा सामान्यतया असंगठित होते हैं। सामान्य बोलचाल में असमुदायात्मक समूहों को परम्परागत और समुदायात्मक समूहों को आधुनिक दबाव समूह कहा जाता है।
(4) प्रदर्शनकारी या अनियमित दबाव समूह - प्रदर्शनकारी समूह वे हैं जो अपनी माँग को लेकर गैर-संवैधानिक उपायों का प्रयोग करते हुए प्रदर्शनकारी विरोध और प्रत्यक्ष कार्यवाही का मार्ग अपनाते हैं। इस प्रकार की कार्यवाही के कई रूप हैं, जैसे-जनसभाएँ, गली कूँचा बैठक, रैली, विरोध दिवस मनाना, हड़ताल, धरना, सत्याग्रह, अनशन, सार्वजनिक सम्पत्ति को हानि पहुँचाना, अग्निदाह, आवागमन अवरुद्ध करना और अन्य रूपों में आक्रमण रवैया अपना लिया जाता है। इन तरीकों को अपनाकर ये संगठित गुट न केवल अपना असन्तोष व्यक्त करते हैं, वरन् शासन के ढाँचे, नीति और कार्य संचालन को भी प्रभावित करते हैं।
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