लियो स्ट्रॉस के राजनीतिक सिद्धांत का वर्णन कीजिये। लियो स्ट्रॉस राजनीतिक सिद्धांत और राजनीतिक दर्शन को राजनीतिक चिंतन का अभिन्न अंग मानते हैं। स्ट्रॉस
लियो स्ट्रॉस के राजनीतिक सिद्धांत का वर्णन कीजिये।
लियो स्ट्रॉस राजनीतिक सिद्धांत और राजनीतिक दर्शन को राजनीतिक चिंतन का अभिन्न अंग मानते हैं। स्ट्रॉस के अनुसार, राजनीतिक सिद्धांत ‘‘राजनीतिक मामलों के स्वरूप को जानने के लिए सच्चा प्रयास है’’। दर्शन ‘‘विवेक के लिए तलाश’’ अथवा ‘‘भूमंडलीय ज्ञान संपूर्ण ज्ञान के लिए तलाश’’ होने के कारण राजनीतिक दर्शन राजनीतिक मामलों के स्वरूप, और अधिकार दोनों अथवा श्रेष्ठता, राजनीतिक व्यवस्था को जानने का सच्चा प्रयास’’ है। राजनीतिक चिंतन राजनीतिक सिद्धांत और राजनीतिक दर्शन दोनों पर लागू होता है। राजनीतिक सिद्धांत और राजनीति दर्शन एक.दूसरे के समसामयिक हैं, क्योंकि आमतौर पर कहा जाता है कि ‘‘चिंतन अथवा क्रिया अथवा कार्य को उसका मूल्यांकन किए बिना समझना असंभव है।’’ स्ट्रॉस ‘‘इतिहासवाद’’ और ‘‘सामाजिक विज्ञान प्रत्यक्षवाद’’ दोनों, जिन्हें सेबाइन द्वारा प्रतिपादित किया गया था, की समालोचना करता है। कैटलिन इनका पक्ष लेता रहे हैं क्योंकि उनकी दृष्टि में पूर्ववर्ती स्थिति ‘‘राजनीति दर्शन की गंभीर विरोधी’’ है।
स्ट्रॉस का विश्वास है कि मूल्य राजनीति दर्शन के अभिन्न अंग हैं और उन्हें राजनीति के अध्ययन से अलग नहीं किया जा सकता है। सभी राजनीतिक क्रियाकलापों का लक्ष्य रक्षण अथवा परिवर्तन है जो किसी चिंतन अथवा मूल्यांकन कि क्या गलत है और क्या सही, द्वारा दिशा.निर्देशित होता है। एक राजनीतिक शास्त्री से आशा की जाती है कि उसके पास महज राय से कुछ अधिक हो। उसके पास एक ज्ञान, अच्छाई का ज्ञान - अच्छी जिंदगी और अच्छे समाज का ज्ञान . होना चाहिए। ‘‘यदि यह प्रत्यक्षवादिता सुस्पष्ट हो, यदि मानव अच्छी जिंदगी और अच्छे समाज का ज्ञान प्राप्त करने का अपना सुस्पष्ट लक्ष्य बनाए तो राजनीति दर्शन का प्रादुर्भाव होता है।’’ स्ट्रॉस लिखता है, ‘‘राजनीतिक मामलों के स्वरूप से जुड़ी कल्पनाए¡ जो राजनीतिक मामलों की सभी जानकारियों में सन्निहित हैं, मतों के स्वरूप की होती हैं। ऐसा तभी होती है जब ये कल्पनाए¡ समालोचनात्मक और संसक्तात्मक विश्लेषण का प्रकरण बन जाती हैं जिससे राजनीति के दार्शनिकीय अथवा वैज्ञानिक अभिगम प्रकट होता है।’’ उसके अनुसार, ‘‘राजनीति दर्शन राजनीतिक मामलों के स्वरूप के बारे में अभिमत को राजनीतिक मामलों के स्वरूप की जानकारी द्वारा प्रतिस्थापित करना’’ है, ‘‘ऐसा प्रयास व्यवस्था को स्पष्ट अर्थों में जानना चाहता’’ है। व्यापक रूप में राजनीति दर्शन इसके आरंभ से ही, लगभग बिना किसी विवेचना के हाल ही में उस समय तक परिष्कृत होता रहा है जब व्यवहारवादियों ने इसकी विषय वस्तु, तरीकों और कार्यों पर विवाद उठाना आरंभ किया तथा इसकी तथाकथित संभावनाओं को चुनौती दी।
लियो स्ट्रॉस ने 1962 में राजनीति-दर्शन के महत्व पर बल देते हए यह तर्क दिया कि राजनीति का नया विज्ञान ही उसके हास का यथार्थ लक्षण है। इसने प्रत्यक्षवादी दृष्टिकोण (Positivist View) अपना कर मानकीय विषयों (Normative Issue) की चुनौती की जा उपेक्षा की है, उससे पश्चिमी जगत के सामान्य राजनीतिक संकट का संकेत मिलता है। इसने उस संकट को बढ़ावा भी दिया है।
स्ट्रॉस ने लिखा कि राजनीति का अनुभवमूलक सिद्धांत (Empirical Theory) समस्त मूल्यों की समानता की शिक्षा देता है। यह इस बात में विश्वास नहीं करता कि कुछ विचार स्वभावतः उच्चकोटि के होते हैं, और कुछ स्वभावतः निम्नकोटि के होते हैं; वह यह भी नहीं मानता कि सभ्य मनुष्यों और जंगली जानवरों में कोई तात्विक अंतर होता है। इस तरह यह अनजाने में स्वच्छ जल को गंदे नाले के साथ बहा देने की भूल करता है।
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