दोस्तों आज के लेख में हमने वर्षा पर संस्कृत (Sanskrit) में कविता अर्थात Poem on rain प्रस्तुत की है। यह कविता कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी है। वर्षा पर लिखी गई इस संस्कृत कविता के अंतर्गत हम जानेंगे कि वर्षा होने के दौरान प्रकृति में क्या क्या बदलाव आते हैं। कौन-कौन सी घटनाएं घटती हैं।
वर्षा पर संस्कृत में कविता। Poem on Rain in Sanskrit
सर सर आयान्ति वर्षाधारा:
अत्र प्रसन्ना: सर्वे जीवा: ।
वृक्षै: प्राप्तं नवजीवनम्
नृत्यन्ति ङ्कोदेन बाला: सततम् ।।1।।
धप् धप् पतन्ति जलप्रपाता:
ड्रँव ड्रँव कुर्वन्ति कूपमण्डूका: ।
टप् टप् गायन्ति पर्णेषु बिन्दव:
पक्ववटखादने मग्ना जना: ।।2।।
कृष्णान् ङ्केघान् पश्य आकाशे
धडाम् धुडुम् धडाम् धुडुम् गर्जन्ति ते ।
जलेन क्लिन्नं जातमङ्गं
धो धो धो वर्षन्ति ङ्केघा: सततम् ।।3।।
नृत्ङ्मं कुर्वन्ति मङ्मूरास्ते
सिंहा गर्जन्ति ननु ङ्केघनाद: ।
सत्वरं वहन्ति सागरं नद्य:
प्राणा हि प्राणिनां वर्षाकाल: ।।4।।
लेखक - श्री. श्रीहरि: गोकर्णकर:
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