मेजर ध्यानचंद पर निबंध। Major Dhyan Chand par Nibandh
मेजर ध्यानचंद,
जिन्हें हॉकी के जादूगर के रूप में जाना जाता है, ने हॉकी खेलना फौज में
शुरू किया। उन्हें 1926 में न्यूजीलैंड के दौरे पर जाने वाली हॉकी टीम में शामिल
किया गया। अपने शानदार खेल की बदौलत ध्यानचंद की देश-विदेश में बेहद सराहना हुई। ध्यानचंद
की सहायता से भारत ने लगातार तीन ओलंपिक खेलों एम्सटर्डस (1928),
लॉसंएजलिस (1932) और बर्लिन (1936) में स्वर्ण पदक प्राप्त किए। ध्यानचंद ने
ओलंपिक खेलों में 101 गोल और दूसरे अंतर्राष्ट्रीय खेलों में 300 गोल किये। भारत
सरकार ने उन्हें 1954 में पद्मभूषण से नवाजा। ध्यानचंद का जन्मदिन (29 अगस्त)
को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
ध्यानचंद की धाक इतनी थी कि वियना के र्स्पोर्ट्स क्लब में उनकी एक प्रतिमा स्थापित की गई, जिसके चार हाथ थे और उनमें चार हॉकी स्टिक थीं। ध्यानचंद हॉकी के मैदान में इतने चमत्कारिक होते थे कि संसार-भर में लोगों को संदेह होता था कि क्या उनकी स्टिक लकड़ी के अलावा किसी और वस्तु से बनी है! हॉलैंड में ध्यानचंद की हॉकी स्टिक को तोड़कर देखा गया कि कहीं उसमें चुंबक तो नहीं है। जापान में लोगों ने सोचा कि उनकी स्टिक के अंदर गोंद लगा है।
ध्यानचंद की धाक इतनी थी कि वियना के र्स्पोर्ट्स क्लब में उनकी एक प्रतिमा स्थापित की गई, जिसके चार हाथ थे और उनमें चार हॉकी स्टिक थीं। ध्यानचंद हॉकी के मैदान में इतने चमत्कारिक होते थे कि संसार-भर में लोगों को संदेह होता था कि क्या उनकी स्टिक लकड़ी के अलावा किसी और वस्तु से बनी है! हॉलैंड में ध्यानचंद की हॉकी स्टिक को तोड़कर देखा गया कि कहीं उसमें चुंबक तो नहीं है। जापान में लोगों ने सोचा कि उनकी स्टिक के अंदर गोंद लगा है।
ध्यानचंद का जन्म 29
अगस्त, 1905 को इलाहाबार में हुआ था। उनके पिता
ब्रिटिश भारतीय सेना में थे। ध्यानचंद ने अपना शुरूआती समय झांसी में बिताया। 16
वर्ष की उम्र में ध्यानचंद सेना में भार्ती हो गये औैर उन्होंने हॉकी को गंभीरता
से लेना प्रारंभ किया। बर्लिन ओलंपिक में हिटलर उनके खेल से इतना प्रभावित हुआ कि
उसने उन्हें जर्मन सेना में कर्नल बनाने का प्रस्ताव दिया। उन्होंने पूर्वी
अफ्रीका जाने वाली टीम का नेतृत्व किया। इस टूर में भारत द्वारा खेले 21 मैचों
में ध्यानचंद ने 61 गोल किये। 30 वर्ष के उत्कृष्ट करियर के बाद ध्यानचंद ने
1949 में अंतर्राष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कह दिया। वह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स
के मुख्य कोच के रूप सेवानिवृत हुए। उनके असाधारण योगदान के लिये,
भारत सरकार ने 1956 में पद्मभूषण से सम्मानित किया।
3 दिसंबर,
1979 को इस महान हॉकी खिलाड़ी का निधन हो गया।
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