चिड़ियाघर की सैर पर निबंध Essay on visit to a zoo in hindi : आज हम लोग बहुत खुश थे। आज हमें चिड़ियाघर की सैर के लिए जाना था। ‘चिड़ियाघर’ देखने की इच्छा हमारे मन में कई दिनों से थी। आज उसे देखने का अवसर मिल ही गया। जब हम चिड़ियाघर के मुख्य द्वार पर पहुँचे तो मामाजी ने कहा ‘‘तुम लोग ठहरो मैं टिकिट लेकर आता हूँ।’’ कुछ ही देर में मामाजी टिकिट लेकर आ गए। फिर हम लोग आगे बढ़े। रास्ता समीप के बड़े तालाब के किनारे से होकर जाता था। हम लोग कुछ दूर आगे बढ़े ही थे कि मैंने देखा-तार की लम्बी जाली के बाड़े के अन्दर एक भूरे रंग का जानवर, पेड़ पर उल्टा चढ़ रहा था। तभी मामाजी और श्याम ने भी उधर देखा।
चिड़ियाघर की सैर पर निबंध। Essay on visit to a zoo in hindi
आज हम लोग बहुत खुश थे। मैं और श्याम, सुबह जल्दी उठ गए। आज हमें चिड़ियाघर की सैर के लिए जाना था। मामाजी ने रात को ही हम लोगों को बता दिया था। आज मामाजी की छुट्टी थी। ‘चिड़ियाघर’ देखने की इच्छा हमारे मन में कई दिनों से थी। आज उसे देखने का अवसर मिल ही गया।
जब हम चिड़ियाघर के मुख्य द्वार पर पहुँचे तो मामाजी ने कहा ‘‘तुम लोग ठहरो मैं टिकिट लेकर आता हूँ।’’ कुछ ही देर में मामाजी टिकिट लेकर आ गए। फिर हम लोग आगे बढ़े। रास्ता समीप के बड़े तालाब के किनारे से होकर जाता था। हम लोग कुछ दूर आगे बढ़े ही थे कि मैंने देखा-तार की लम्बी जाली के बाड़े के अन्दर एक भूरे रंग का जानवर, पेड़ पर उल्टा चढ़ रहा था। तभी मामाजी और श्याम ने भी उधर देखा।
मामाजी बोले, ‘‘श्याम, बताओ यह क्या है?’’ श्याम कुछ कहता उसके पहले ही मैं बोल पड़ी, ‘मामाजी यह तो भालू है। इसे मैंने अपने गाँव में पहले भी देखा है।’’
अचानक श्याम की दृष्टि पूँछ वाले जानवर पर पड़ी। वह बोला, ‘‘अरे-अरे देखो, वह क्या है?’’ मैंने पूछा, ‘‘कहाँ?’’ उसने हाथ का इशारा तालाब की तरफ किया और बोला, ‘‘वह देखो तालाब के किनारे पानी से बाहर छिपकली जैसा बड़ा जानवर।’’
मामाजी बोले, अरे पगले यह तो मगर है। पानी से बाहर आकर आराम कर रहा है। हमने देखा पेड़ों के झुरमुट के नीचे कुछ जानवर खड़े थे। ये हमारे गाय-बैलों जैसे दिख रहे थे। इनके सींग लम्बे और शरीर अधिक पुष्ट थे। हमारी आहट पाकर वे एक ओर बढ़ने लगे। मैंने पूछा, ‘‘मामाजी ये कौन से जानवर हैं?’’ मामाजी ने बताया, ‘‘इन्हें नीलगाय कहते हैं। यह भी गाय की तरह घास चरती हैं, इनका रंग हल्का नीला होने से इन्हें नीलगाय कहते हैं।’’ तभी एक पेड़ के नीचे कुछ बन्दर दिखाई दिए। वे इधर-उधर, उछलकूद कर रहे थे। बन्दर पेड़ पर बैठे हुए कुछ खा रहे थे। श्याम बोला, ‘‘दीदी-दीदी देखो बन्दर। बन्दर का छोटा बच्चा कैसे अपनी माँ से चिपका हुआ है?’’ हमें बन्दरों की उछलकूद देखकर बड़ा मजा आया।
इसके पहले मैंने कभी भी इतना सुन्दर दृश्य नहीं देखा था। बड़े-बड़े छायादार पेड़ ओैर उनके बीच मुलायम घास। ये सब बहुत सुन्दर और सुखद लग रहा था। यहाँ पहले से ही कुछ लोग आराम कर रहे थे। ये लोग भी हमारी तरह ही चिड़ियाघर देखने आये थे। वन विहार में खाने पीने की वस्तुएँ ले जाना मना है। प्रवेश द्वार पर ही लिखा है।
आसपास के पेड़ों पर तरह-तरह के खूबसूरत पक्षी भी हमें दिखाई दिए। तोता, बगुला, मैना, कबूतर, और रंग-बिरंगी छोटी-छोटी चिड़ियाँ देखकर मन खुशी से झूम उठा। पक्षियों की चहचहाहट बरबस ही मन को उस ओर खींच रही थी कि अचानक हिरणों का एक झुण्ड तेजी से हमारे सामने से गुजर गया। हम तो बस उसे देखते ही रह गए।
आगे चलने पर एक ऊँचे तारों की जाली वाला बाड़ा दिखाई दिया। मामाजी बोले, ‘‘आओ तुम्हें जंगल के राजा से मिलाते हैं’’ ‘‘जंगल का राजा’’ श्याम बोला। ‘‘हाँ जंगल का राजा शेर।’’ मामाजी ने कहा। हम बातें करते-करते बाड़े के पास पहुँच गए। अचानक जोरदार दहाड़ सुनाई दी। श्याम डर गया। वह मामाजी से लिपट गया। मामाजी बोले, ‘‘बच्चो! डरो मत, यह शेर है। यह बाड़े के अन्दर है, इसलिए यह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।’’ फिर हमने शेर को ध्यान से देखा। शेर की लाल-लाल, बड़ी-बड़ी आँखें, मोटे-मोटे तेज़ नुकीले दाँत, लपलपाती जीभ और भरा हुआ शरीर। वह दृश्य मुझे आज भी याद है।
समीप के बाडे़ में सफेद बाघ को देखकर तो हम दंग रह गए। एकदम सफेद और शरीर पर काले या गहरे भूरे रंग की धारियाँ। मामाजी ने बताया कि सफेद बाघ हमारे देश में ही पाए जाते हैं। इनकी संख्या बहुत कम है।
एक बड़े पिंजड़े में बाघ के दो छोटे-छोटे बच्चे आपस में लोट-पोट हो, मस्ती में खेल रहे थे। इन्हें देखकर तो मुझे अपनी बिल्ली के बच्चों की याद आ गई।
घूमते-घूमते हमें काफी समय हो गया था। श्याम तो थक चुका था। मामाजी ने पूछा ‘‘क्या और घूमना चाहते हो? या फिर वापिस चलें।’’ मैंने कहा, ‘‘मामाजी मन तो नहीं चाहता लेकिन थकान हो चली है, वापिस चलना चाहिए।’’ हम लौटने लगे तभी वृक्ष के नीचे एक सुन्दर पक्षी दिखाई दिया। श्याम बोला, ‘‘मामाजी यह क्या है?’’ मामाजी ने कहा ‘‘यह ‘मोर’ है। इसका नाच बहुत सुन्दर लगता है।’’
चिड़ियाघर का आनन्द लेते हुए हम बड़े तालाब के किनारे आ गए। बड़े तालाब का दृश्य तो देखते ही बनता था। वहाँ लोग नौका विहार का आनन्द ले रहे थे। शाम का धुंधलका और शहर की जगमग करती रोशनी। ये सब मिलकर अत्यन्त सुन्दर दृश्य बना रहे थे। इसे देखकर मन बड़ा ही प्रसन्न हुआ। वहाँ हमने आइसक्रीम का मजा लिया। आइसक्रीम, चाट-पकौड़ी आदि बेचने वाले अपने छोटे खेमचे लिए वहाँ मौजूद रहते हैं। थोड़ा रुककर हम घर की ओर चल दिए। मेरा मन तो अभी भी ‘चिड़ियाघर’ के सुन्दर-सुन्दर दृश्यों में खोया हुआ था।
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