ऋषि कुमार नचिकेता के कहानी व नचिकेता-यमराज के बीच हुआ संवाद : नचिकेता, वैदिक युग के एक तेजस्वी ऋषिबालक थे। नचिकेता की कथा का वर्णन तैतरीय ब्राह्मण तथा कठोपनिषद् तथा महाभारत में मिलता है। नचिकेता महर्षि वाजश्रवा के पुत्र थे। एक बार महर्षि वाजश्रवा ने 'विश्वजित' यज्ञ किया और उन्होंने प्रतिज्ञा की कि इस यज्ञ में मैं अपनी सारी सम्पत्ति दान कर दूँगा। नचिकेता ने कहा, “मैं तो आपका पुत्र हूँ बताइए आप मुझे किसे देंगे ?” महर्षि ने नचिकेता की बात का कोई उत्तर नहीं दिया परन्तु नचिकेता ने बार-बार वही प्रश्न दोहराया। महर्षि को क्रोध आ गया। वे झल्लाकर बोले, “जा, मैं तुझे यमराज को देता हूँ।”
ऋषि कुमार नचिकेता के कहानी व नचिकेता-यमराज के बीच हुआ संवाद
नचिकेता, वैदिक युग के एक तेजस्वी ऋषिबालक थे। नचिकेता की कथा का वर्णन तैतरीय ब्राह्मण (3.11.8) तथा कठोपनिषद् तथा महाभारत में मिलता है। नचिकेता महर्षि वाजश्रवा के पुत्र थे।
बहुत पुरानी बात है जब हमारे यहाँ वेदों का पठन-पाठन होता था। ऋषि आश्रमों में रहकर शिष्यों को वेदों का ज्ञान देते थे। उन दिनों एक महर्षि थे वाजश्रवा। वे महान विद्वान और चरित्रवान थे। एक बार महर्षि वाजश्रवा ने 'विश्वजित' यज्ञ किया और उन्होंने प्रतिज्ञा की कि इस यज्ञ में मैं अपनी सारी सम्पत्ति दान कर दूँगा।
कई दिनोें तक यज्ञ चलता रहा। यज्ञ की समाप्ति पर महर्षि ने अपनी सारी गायों को यज्ञ करने वालों को दक्षिणा में दे दिया। दान देकर महर्षि बहुत संतुष्ट हुए।
बालक नचिकेता के मन में गायों को दान में देना अच्छा नहीं लगा क्योंकि वे गायें बूढ़ी और दुर्बल थीं। ऐसी गायों को दान में देने से कोई लाभ नहीं होगा। उसने सोचा पिताजी जरूर भूल कर रहे हैं। पुत्र होने के नाते मुझे इस भूल के बारे में बताना चाहिए।
नचिकेता पिता के पास गया और बोला, “पिताजी आपने जिन वृद्ध और दुर्बल गायों को दान में दिया है उनकी अवस्था ऐसी नही थी कि ये दूसरों को दी जाएं।”
महर्षि बोले “मैंने प्रतिज्ञा की थी कि मैं अपनी सारी सम्पत्ति दान कर दूँगा, गायें भी तो मेरी सम्पत्ति थीं। यदि मैं दान न करता तो मेरा यज्ञ अधूरा रह जाता।”
नचिकेता ने कहा, “मेरे विचार से दान में वही वस्तु देनी चाहिए जो उपयोगी हो तथा दूसरों के काम आ सके फिर मैं तो आपका पुत्र हूँ बताइए आप मुझे किसे देंगे ?”
महर्षि ने नचिकेता की बात का कोई उत्तर नहीं दिया परन्तु नचिकेता ने बार-बार वही प्रश्न दोहराया। महर्षि को क्रोध आ गया। वे झल्लाकर बोले, “जा, मैं तुझे यमराज को देता हूँ।”
नचिकेता आज्ञाकारी बालक था। उसने निश्चय किया कि मुझे यमराज के पास जाकर अपने पिता के वचन को सत्य करना है। यदि मैं ऐसा नहीं करूँगा तो भविष्य में मेरे पिता जी का सम्मान नहीं होगा।
नचिकेता ने अपने पिता से कहा, “मैं यमराज के पास जा रहा हूँ, अनुमति दीजिए। महर्षि असमंजस में पड़ गए। काफी सोच- विचार के बाद उन्होंने हृदय को कठोर करके उसे यमराज के पास जाने की अनुमति दी।
नचिकेता यमराज संवाद
नचिकेता यमलोक पहुँच गया परन्तु यमराज वहाँ नहीं थे। यमराज के दूतों ने देखा कि नचिकेता का जीवनकाल अभी पूरा नहीं हुआ है इसलिए उसकी ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। लेकिन नचिकेता तीन दिनों तक यमलोक के द्वार पर बैठा रहा।
चौथे दिन जब यमराज ने बालक नचिकेता को देखा तो उन्होंने उसका परिचय पूछा। नचिकेता ने निर्भीक होकर विनम्रता से अपना परिचय दिया और यह भी बताया कि वह अपने पिताजी की आज्ञा से वहाँ आया है। यमराज ने सोचा कि यह पितृभक्त बालक मेरे यहाँ अतिथि है। मैंने और मेरे दूतों ने घर आए हुए इस अतिथि का सत्कार नहीं किया। उन्होंने नचिकेता से कहा,‘‘हे ऋषिकुमार, तुम मेरे द्वार पर तीन दिनों तक भूखे - प्यासे पड़े रहे, मुझसे तीन वर माँग लो।’’
नचिकेता ने यमराज को प्रणाम करके कहा, ‘‘यदि आप मुझे वरदान देना चाहते हैं तो पहला वरदान यह दीजिए कि मेरे वापस जाने पर मेरे पिता मुझे पहचान लें और उनका क्रोध शान्त हो जाए।’’
यमराज ने कहा- ‘‘तथास्तु“ अब दूसरा वर माँगो।
नचिकेता ने सोचा पृथ्वी पर बहुत से दुःख हैं, दुःख दूर करने का उपाय क्या हो सकता है? इसलिए नचिकेता ने यमराज से दूसरा वरदान माँगा-
स्वर्ग मिले किस रीति से, मुझको दो यह ज्ञान।
मानव के सुख के लिए, माँगूं यह वरदान।।
यमराज ने बड़े परिश्रम से वह विद्या नचिकेता को सिखाई। पृथ्वी पर दुःख दूर करने के लिये विस्तार में नचिकेता नेे ज्ञान प्राप्त किया। बुद्धिमान बालक नचिकेता ने थोड़े ही समय में सब बातें सीख लीं। नचिकेता की एकाग्रता और सिद्धि देखकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए।
उन्होंने नचिकेता से तीसरा वरदान माँगने को कहा। नचिकेेता ने कहा, ’’मृत्यु क्यों होती है? मृत्यु के बाद मनुष्य का क्या होता है? वह कहाँ जाता है?’’
यह प्रश्न सुनते ही यमराज चाैंक पड़े। उन्होंने कहा, ’’संसार की जो चाहो वस्तु माँग लो परन्तु यह प्रश्न मत पूछो, किन्तु नचिकेता ने कहा, ’’आपने वरदान देने के लिए कहा, अतः आप मुझे इस रहस्य को अवश्य बताएँ।’’ नचिकेता की दृढ़ता और लगन को देखकर यमराज को झुकना पड़ा।
उन्होंने नचिकेता को बताया कि मृत्यु क्या है ? उसका असली रूप क्या है ? यह विषय कठिन है इसलिए यहाँ पर समझाया नहीं जा सकता है, किन्तु इतना कहा जा सकता है कि जिसने पाप नहीं किया, दूसरों को पीड़ा नहीं पहुँचाई, जो सच्चाई की राह पर चला उसे मृत्यु की पीड़ा नहीं होती। कोई कष्ट नहीं होता।
इस प्रकार नचिकेता ने छोटी उम्र में ही अपनी पितृभक्ति, दृढ़ता और सच्चाई के बल पर ऐसे ज्ञान को प्राप्त कर लिया जो आज तक बड़े-बड़े पण्डित, ज्ञानी और विद्वान भी न जान सके।
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