अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो मै क्या करता पर निबंध : संसार का प्रत्येक व्यक्ति आत्मोन्नति की कामना को अपने मन में संजोए रखता है। मैंने भी प्रधानमन्त्री बनने का सपना अपने मन में पाल रखा है। मैं यही चाहता हूँ की भारत संसार के सबसे शक्तिशाली, गौरवशाली और वैभवशाली देशों में गिना जाए। यह सपना तभी सच हो सकता है, जब देश में प्रगति और उन्नति का वातावरण मौजूद हो। इसके लिए वर्तमान व्यवस्था में परिवर्तन होना जरुरी है। मैं सोचता हूँ की यदि मुझे देश की व्यवस्था के संचालन का अवसर प्राप्त हुआ, तो मेरा पहला कदम यह होगा की मैं भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी को वास्तविक मायनों में देश की राजभाषा बनाऊंगा और गैर हिंदी भाषी राज्यों में भी इसके प्रयोग को प्रोत्साहन दूंगा।
अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो मै क्या करता पर निबंध
संसार का प्रत्येक व्यक्ति आत्मोन्नति की कामना को अपने मन
में संजोए रखता है। मैंने भी प्रधानमन्त्री बनने का सपना अपने मन में पाल रखा है। मैं यही चाहता हूँ की भारत संसार के सबसे
शक्तिशाली, गौरवशाली और वैभवशाली देशों में गिना जाए। यह सपना तभी सच हो सकता है, जब देश में प्रगति और उन्नति का वातावरण मौजूद हो। इसके लिए वर्तमान व्यवस्था
में परिवर्तन होना जरुरी है। मैं सोचता हूँ की यदि मुझे देश की व्यवस्था के संचालन
का अवसर प्राप्त हुआ, तो मेरा पहला कदम यह होगा की मैं भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी
को वास्तविक मायनों में देश की राजभाषा बनाऊंगा और गैर हिंदी भाषी राज्यों में भी
इसके प्रयोग को प्रोत्साहन दूंगा। बिना अपनी भाषा को अपनाए संसार का कोई भी देश
प्रगति नहीं कर सकता।
देश की धरोहर :
संविधान सभा के अनुसार, केंद्र की भाषा एकमात्र हिंदी होगी। विभिन्न प्रदेशों में
प्रादेशिक भाषाएँ मान्य होंगी। प्रादेशिक सरकारें आपस में तथा केंद्र से हिंदी में
ही पत्राचार करेंगी। विश्वविद्यालयों, उच्च न्यायालयों तथा सर्वोच्च न्यायालय की भाषा
हिंदी होगी। भारत में सभी प्रकार की तकनीकी और गैर-तकनीकी शिक्षा देशी भाषाओं के
माध्यम से ही दी जायेगी। आशय यह है की अंग्रेजों की निशानी अंग्रेजी का इस देश से
सर्वथा लोप कर दिया जाएगा। केवल उन्ही लोगों को अंग्रेजी की शिक्षा दी जायेगी जो
किसी विशेष उद्देश्य के लोइए अंग्रेजी सीखना चाहते हैं। इस प्रकार भाषाओं के
माध्यम से देश की प्राचीन संस्कृति का पुनरुद्धार होगा और राष्ट्रीय स्वाभिमान
जागेगा।
एक नयी शिक्षा
प्रणाली का गठन किया जाएगा और शिक्षा को किसी न किसी कला-कौशल, व्यवसाय या उद्योग
से इस प्रकार जोड़ा जाएगा की शिक्षा के समाप्त होने पर छात्र तत्काल आन्थिक रूप से
स्वावलंबी बन सके। देश के पुरातत्व विभाग को सुदृढ़ किया जाएगा जिससे भारत के
गौरवपूर्ण इतिहास को पुनः जीवंत किया जा सके और हमारी भावी पीढ़ी उसकी झलक देख सके।
मंत्रिमंडल के आकार
में परिवर्तन : मैं मंत्री मण्डल का आकार बहुत ही सीमित रखूँगा। योग्यता संपन्न,
ईमानदार, चरित्रवान और देशभक्त लोगों को ही मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा।
प्रदेशों में भी ऐसा ही किया जाएगा। राजनीति से परिवारवाद का उन्मूलन कर दिया
जाएगा जिससे सभी को चुनाव लड़ने का सामान अधिकार मिल सके।
भारत के बारे में
मेरी कल्पना : मैं चाहता हूँ की प्रशासनिक अधिकारी जनता का शासक या शोषक न होकर
उसे जनता का सेवक बनाया जाए। विदेशों में स्थित भारतीय दूतावासों में योग्य व कुशल
लोगों को ही नियुक्त किया जाएगा जिससे वे देश की विदेश नीति का कुशलता से कार्यान्वन
कर सकें। उनसे आशा की जायेगी की वे विदेशों में अपने देश के लिए कार्य करें।
प्रदेशों में भी प्रशासन को पुनर्गठित किया जाएगा। भारत के गौरव के अनुकूल उन्हें
जनता को कठोरता से दबाने या कुचलने के लिए नहीं, बल्कि उनकी सेवा के लिए तैयार
किया जाएगा। न्यायपालिका को किसी भी प्रकार के राजनीतिक हस्तक्षेप से स्वतंत्र रखा
जाएगा। न्याय प्रक्रिया सस्ती व सरल बनायी जायेगी। आपसी विवादों का समझौतों से हल
निकाला जाएगा जिससे मुकदमों की संख्या में कमी आएगी। तथा विवादों तथा मुकदमों के
निपटारे के लिए न्यायालयों को भी एक निश्चित समय सीमा से बांट दिया जाएगा जिससे
न्याय की प्रक्रिया में तेजी लायी जा सकेगी।
उपसंहार : सत्ता की
राजनीति के स्थान पर सेवा की राजनीति चलाने के लिए चुनाव प्रणाली में परिवर्तन
करना अत्यंत आवशयक है। इसके लिए सबसे पहले अल्पसंख्या, बहुसंख्यक, अनुसूचित जाती,
अनुसूचित जनजाति सम्बन्धी हानिकारक विभाजन को समाप्त करके देश की भावात्मक एकता का
पथ प्रशस्त किया जाएगा। किसी भी व्यक्ति को जाती, धर्म, सम्प्रदाय या भाषा के आधार
पर नहीं अपितु योग्यता और कार्य क्षमता के आधार पर ही प्रोत्साहन दिया जाएगा।
चुनाव प्रणाली अत्यंत सरल बना दी जायेगी। चुनाव का सारा व्यय सरकार स्वयं ही वहां
करे, ऐसी व्यवस्था की जायेगी।
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