हिन्दी निबंध राष्ट्रपिता महात्मा गांधी :महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में सम्मान दिया जाता है। उन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतवर्ष के इतिहास में उनका नाम सदा अमर रहेगा।उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को काठियावाड़ के पोरबंदर नामक स्थान पर गुजरात राज्य में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद और माता का नाम पुतलीबाई था।
हिन्दी निबंध : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर लघु निबंध
गांधी जी ने वहाँ रहकर भी सादा जीवन बिताया। वकालत की डिग्री लेकर उन्होंने मुंबई में मुकदमे लड़ने शुरू कर दिए। वे झूठे मुकदमे नहीं लेते थे। एक मुकदमे के सिलसिले में उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ उन्होंने भारतीयों पर अंग्रेजों के अत्याचार अपनी आँखों से देखे और स्वयं भी झेले। तभी से उन्होंने देश को आज़ाद कराने का प्रण लिया।
भारत लौटकर उन्होंने आम लोगों को अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संगठित किया। उन्होंने कई बार सत्याग्रह भी किये और जेल यात्राएं भी की। उनका "नमक सत्याग्रह" तथा 1942 में "भारत छोड़ो" आंदोलन रंग लाया। अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजी शासन से मुक्त हो गया। गांधी जी ने अछूतों के उद्धार, खाड़ी के प्रचार, तथा महिलाओं के उत्थान के लिए अनेक कार्य किये। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। उनके मुख से निकले अंतिम शब्द थे -"हे राम "। दिल्ली के पर उनकी समाधि बड़ी हुई है।
समस्त संसार महात्मा गाँधी को सत्य और अहिंसा के पुजारी रूप में जानता है। भारत वर्ष के स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी ने सत्य अहिंसा और असहयोग को शास्त्र के रूप में अपनाया।
महात्मा गांधी पर विस्तृत निबंध
राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानायक महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को काठियावाड़ के पोरबंदर नामक स्थान पर गुजरात राज्य में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद और माता का नाम पुतलीबाई था। उनके पिता करमचंद पोरबंदर रियासत के दीवान थे। उनकी माता पुतलीबाई एक धार्मिक महिला थी। उनका काफी समय पूजा-पाठ में ही व्यतीत होता था। गाँधी जी की शादी 13 वर्ष की काम उम्र में ही कस्तूरबा बाई से करवा दी गई। गांधी जी पर माता की भक्ति भावना और पिता की कर्तव्य निष्ठां का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। गाँधी जी ने बचपन में एक नाटक "सत्यवादी हरिशचंद्र " देखा था जिसका उनके मानस पटल पर बहुत प्रभाव पड़ा और उन्होने कभी झूठ ना बोलने का निश्चय किया। मैट्रिक पास करने के बाद जब गांधी जी बैरिस्टरी की पढाई के लिए इंग्लॅण्ड जाने लगे तो उनकी माता पुतलीबाई ने गांधी जी से शराब व स्त्री के दूर रहने की प्रतिज्ञा करवाई। जिसका गांधी जी ने दृढ़ता से पालन किया।गाँधी जी शिक्षा पूरी करने के बाद 1891में भारत वापस आये। मुंबई में गांधी जी ने वकालत शुरू की किन्तु वकालत कुछ जमी नहीं क्योंकि वकालत में झूठ बोलना पड़ता था। और उन्होंने सत्य बोलने का प्रण ले रखा था। इसी समय किसी केस के लिए गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। केस में गांधी जी भारतीय पोशाक में कोर्ट गए थे। न्यायाधीश ने उनसे पगड़ी उतारने के लिए कहा पर इन्होने पगड़ी नहीं उतारी और कोर्ट से बाहर आ गए। अफ्रीका में काले-गोर का भेद काफी माना जाता था। अंग्रेज़ शासक भारतीयों व अफ्रीका के मूल निवासियों के साथ न केवल अपमानजनक व्यवहार करते थे बल्कि उन पर अत्याचार भी करते थे। गांधी जी को दरबान से रेल द्वारा सफर करना था। वह प्रथम श्रेणी का टिकट लेकर डिब्बे में बैठ गए। उसी समय एक गोरा उसी डिब्बे में आकर बैठा। उसने गार्ड को बुलाकर कुछ कहा और फिर उसने गांधी जी से उन डिब्बे जाने को कहा ,किन्तु गांधी जी उस डिब्बे से नहीं उतरे और कहा की वे नियमानुसार टिकट लेकर डिब्बे में बैठे हैं। किन्तु उनकी एक ना सुनी गई और उन्हें रेल के डिब्बे से उठाकर बाहर फेंक दिया गया। लोकतंत्र का स्वांग करने वाले अंग्रेजों के इस दुर्व्यवहार से गांधी जी काफी खिन्न हुए। गांधी जी ने इस घटना के बाद वहाँ भारतीयों को संगठित करना शुरू किया। इसी समय गांधी जी को भारत वापस आना पड़ा। भारत वापसी पर आप बाल गंगाधर तिलक गोपाल कृष्णा गोखले आदि भारतीय नेताओं के संपर्क में आये। आपने भारतीय नेताओं को दक्षिण अफ्रीका में भारतीय पर होने वाले अत्याचार से अवगत कराया।
१८९३ में उन्हें दादा अब्दुला इनका व्यापार कंपनी का मुकदमा चलाने के लिये गांधी जी पुनः अफ्रीका लौट गए, किन्तु इस बार अंग्रेजों ने उनसे और भी अधिक दुर्व्यवहार किया। बस किसी प्रकार एक अंग्रेज महिला ने आप के प्राणों की रक्षा की। जब ट्रांसवाल काला कानून पारित हुआ, तब गांधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन छेड़ दिया और अंत में उन्हें सफ़लता मिली।
गांधी जी उस बार जब भारत वापस लौटे तो प्रथम विश्व युद्ध सन 1914 छिड़ा हुआ था। गांधी जी ने इसी समय स्वदेशी आंदोलन चलाया। कुटीर उद्योगों धंधो का उत्थान करने के लिए वे हाथ का कटा बना कपडा पहनने के लिए लोगों को प्रेरित करने लगे। और खुद भी वैसे ही आचरण करने लगे। अंग्रेजों से लड़ने के लिए गांधी जी ने दो अचूक उपाय निकाले सत्याग्रह और अनशन।
इसी अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में जनरल डायर के सिपाहियों ने शांतिपूर्ण सभा में उपस्थित सभी नलोगों को गोलियों से भून डाला। सन 1920 में कांग्रेस द्वारा आयोजित विशेष सभा में अंग्रेजों के के अत्याचारों का विरोध करने का प्रस्ताव पारित किया गया और सारे भारत में असहयोग आंदोलन प्रारम्भ हो गया। ीा आंदोलन में हजारों लोग जेल चले गए। 12 मार्च 1930 को गांधी जी ने दांडी मार्च यात्रा निकाली और नमक कानून को तोडा। इसके बाद गाँधी जी ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन सन 1942 में शुरू किया जिससे अंग्रेज बहुत घबरा गए। अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हो गया।
30 जनवरी 1948को प्रार्थना सभी जाते समय गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हे राम कहते हुए उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
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