ईद-उल-फितर पैर स्पीच
भारत में अनेक धर्मों के लोग रहते हैं और अपने-अपने त्यौहार उल्लास के साथ मनाते हैं। ईद मुसलामानों का प्रसिद्ध पर्व है। ईद वर्ष में दो बार आती है। पहली ईद-उल-फितर या मीठी ईद और दूसरी ईद-उल-अजहा अर्थात बकरीद।तीस रोज़े रखने के बाद ही ईद आती है। ऐसा माना जाता है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब का एक मॉस तक मक्का की एक गुफा में निर्जल और निराहार रह रहे थे। यह समय रमज़ान का मॉस था। इसी महीने में उनसे कुरान शरीफ लिखने की प्रेरणा हुई थी। इसीलिए मुसलमान लोग इस मॉस को पवित्र मानते है।
इस रमज़ान मास में रोज़े रखे जाते हैं। रोज़े अर्थात निर्जल व्रत। सूर्योदय से पूर्व और सूर्यास्त के बाद थोड़ा बहुत खाना-पीना होता है। इस मास के अंत में शुक्ल पक्ष का पहला चाँद दिखता है। उसके अगले दिन ईद का त्यौहार खुशियों और उल्लास के साथ मनाया जाता है। लोग मस्जिद में जाकर नमाज़ पढ़ते हैं। जगह-जगह मेले लगते हैं। मिठाइयां बनायी जाती हैं ,नए वस्त्र पहने जाते हैं। एक दुसरे के गले मिलकर बधाई दी जाती हैं।
ईद उल अजहा कुर्बानी का प्रतीक है। पैगम्बर इब्राहिम अपने बच्चे की कुर्बानी देने को तैयार थे परंतु छुरी बकरी के बच्चे की गर्दन पर चल गई। तभी से बकरीद मनाई जाने लगी। यह बलिदान की प्रेरणा देती है।
ईद भी अन्य त्यौहारों की तरह प्रेम व भाईचारे का सन्देश देती है।
0 comments: